
राजद नेता तेजस्वी यादव। (फोटो- X/@yadavtejashwi)
बिहार विधानसभा चुनाव की मतगणना से साफ है कि तेजस्वी का 'तेज' कम हो गया है। सीएम बनने का उनका सपना तो टूट ही चुका है, उनके नेतृत्व में पार्टी (राष्ट्रीय जनता दल) और गठबंधन की हालत भी खराब हो गई है। मतगणना का शुरुआती रुझान से ही यही संकेत मिल रहे थे। आखिर इसकी वजह क्या रही? समझते हैं।
तेजस्वी ने हर परिवार को सरकारी नौकरी देने का वादा किया। उनके इस वादे को लोगों ने व्यावहारिक नहीं माना। इसकी वजह भी थी। ताजा अनुमानों के मुताबिक बिहार में ढाई करोड़ से ज्यादा परिवार हैं। अभी राज्य में सरकारी नौकरी करने वाले लोगों की संख्या 15 लाख से भी नीचे बताई जाती है। ऐसे में पांच साल में करीब डेढ़ करोड़ लोगों को सरकारी नौकरी देना किसी भी लिहाज से संभव नहीं है। दूसरी बात, लोगों ने यह भी देखा कि तेजस्वी जितने दिन सरकार में रहे, उतने दिनों में कितने लोगों को सरकारी नौकरी मिली? ऐसे में तेजस्वी का यह वादा उलटा असर कर गया।
तेजस्वी ने विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के मुखिया मुकेश सहनी को महागठबंधन की सरकार बनने की स्थिति में उप मुख्यमंत्री पद देने का वादा कर दिया। सहनी का राजनीतिक कद देखते हुए यह वादा मतदाताओं के एक वर्ग को नहीं पचा। वहीं, मुस्लिम मतदाताओं को भी यह खटका कि राजद को एकमुश्त वोट देने वाले मुसलमानों के लिए तेजस्वी ने यह गारंटी नहीं दी।
चुनाव के अंत तक महागठबंधन में कांग्रेस और राजद की अनबन साफ दिखती रही। यह मतभेद सिर्फ और सिर्फ तेजस्वी को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करने की जिद को लेकर था। राजद और कांग्रेस बिना सीट समझौते के उम्मीदवार उतारने लगीं। अंत समय में कांग्रेस की पहल पर समझौता हुआ। तेजस्वी को ‘सीएम फेस’ घोषित किया गया। लेकिन, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। बिगड़ चुके चुनावी समीकरण और जमीनी माहौल को पक्ष में करना गठबंधन के लिए आसान नहीं रह गया था।
तेजस्वी को परिवार में ही चुनौती मिली। बड़े भाई तेज प्रताप से। वह अलग पार्टी बना कर मैदान में उतरे और भाई से खुली अदावत की। उन्होंने ऑन रिकॉर्ड कहा, ‘तेजस्वी महुआ चले गए तो मुझे भी राघोपुर जाना ही था। अगर वह महुआ (तेज प्रताप का चुनाव क्षेत्र) नहीं जाते तो मैं भी राघोपुर (तेजस्वी का चुनाव क्षेत्र) नहीं जाता।’ तेज प्रताप का वोट के लिहाज से बहुत ज्यादा असर नहीं माना जाए तो भी पारिवारिक झगड़े और भाइयों में खुली अदावत का गलत संदेश राजद के समर्थकों में तो गया ही।
तेजस्वी और राजद को पिछले चुनाव के नतीजों का साया भी भारी पड़ा। 2020 के विधानसभा चुनाव में राजद का प्रदर्शन उसके सत्ता से बाहर होने के बाद के बेहतरीन प्रदर्शन में से एक था। शायद उसी प्रदर्शन को आधार मान कर तेजस्वी ने गठबंधन को महत्व नहीं दिया। वह सीएम फेस बनने की जिद पर अड़े रहे और संभवतः अपने चेहरे के दम पर जीतने का भ्रम भी पाल लिया।
चुनाव से ऐन पहले नीतीश सरकार ने जनता को खूब ‘रेवड़ियां’ बांटी और घोषणापत्र में भी एनडीए की पार्टियों ने ऐसे ही वादे किए। तेजस्वी ने भी इसकी नकल कर ली। यहां तक कि प्रचार खत्म होने से ऐन पहले तेजस्वी ने महिलाओं के खाते में 14 जनवरी को 30-30 हजार रुपये डालने का वादा कर डाला। स्वाभाविक है, जनता ने उस नीतीश सरकार पर भरोसा किया जिससे उसे पहले ही रेवड़ियां मिल चुकी थीं।
तेजस्वी की हार के कारण पढ़ने के बाद अब जानिए नीतीश कुमार की जीत का फार्मूला।
Updated on:
14 Nov 2025 05:07 pm
Published on:
14 Nov 2025 10:49 am
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