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संविधान दिवस के 76 साल, लेकिन आज भी सिर्फ 70% लोगों को ही पता उनके मौलिक कर्तव्य

भारत के संविधान को अपनाए जाने के 76 साल पूरे होने पर हुए पत्रिका के देशव्यापी ऑनलाइन सर्वे में 70% लोगों ने मौलिक कर्तव्यों की कम जानकारी होने पर चिंता जताई, जबकि 59% लोगों ने इसे लोकतंत्र की मजबूती की सबसे बड़ी उपलब्धि माना और 42% ने राजनीतिक ध्रुवीकरण और क्षेत्रवाद को भविष्य की सबसे बड़ी चुनौती बताया।

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भारत

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Himadri Joshi

Nov 26, 2025

Dr BR Anbedkar

डॉ बीआर अंबेडकर (प्रतीकात्मक तस्वीर)

आज भारत के संविधान को अपनाए हुए 76 साल पूरे हो गए। हर साल आज के दिन को देशभर में संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि संविधान दिवस मनाने वाले लोगों में 70 फीसदी लोगों का मानना है कि आम नागरिकों को उनके मौलिक कर्तव्यों की बहुत कम जानकारी है। वहीं 59 फीसदी लोग मानते हैं कि पिछले 75 साल में संविधान ने लोकतंत्र को मजबूत किया है।

पत्रिका के देशव्यापी ऑनलाइन सर्वे में हुआ खुलासा

संविधान दिवस के मौके पर पत्रिका के देशव्यापी ऑनलाइन सर्वे में यह नतीजे सामने आए हैं। सर्वे में बड़ी संख्या में लोगों ने अपनी राय दी। सर्वे में यह भी सामने आया कि आज के दौर में 32 फीसदी लोग मानते हैं कि संविधान के मूल्यों में धर्मनिरपेक्षता पर खतरा है। वहीं देश का भविष्य मानी जाने वाली युवा पीढ़ी की बात की जाए तो इस सर्वे के अनुसार सिर्फ 32% युवा ऐसे हैं तो संविधान पर चर्चा करने में बहुत ज्यादा दिलचस्पी रखते हैं। वहीं 41% को इसमें थोड़ी बहुत और 18% को कम रूची है। देश में 9% युवा ऐसे भी हैं जिन्हें संविधान पर चर्चा में कोई दिलचस्पी नहीं है।

संविधान की सबसे बड़ी उपलब्धि लोकतंत्र की मजबूती

सर्वे में सामने आया कि 59% लोग यह मानते है कि पिछले 75 साल में संविधान की सबसे बड़ी उपलब्धि लोकतंत्र की मजबूती है जबकि 23% का मानना हैं कि यह समान नागरिक अधिकार है। 8% लोग स्वतंत्र न्यायपालिका और 10% के लिए सामाजिक न्याय ही संविधान की सबसे बड़ी उपलब्धि है। मौलिक कर्तव्यों की बात की जाए तो सिर्फ 12% आबादी के अनुसार सभी नागरिकों को इसकी जानकारी है। जबकि 18% के अनुसार आधे नागरिकों को और 67% के अनुसार बहुत कम लोगों को अपने कर्तव्यों का पता हैं। वहीं 3% लोगों का कहना है कि उन्हें कभी किसी ने उनके मौलिक कर्तव्यों के बारे में बताया ही नहीं।

धर्मनिरपेक्षता पर आज के दौर में सबसे अधिक खतरा

इसके अनुसार, 13% लोग मानते हैं कि आज के दौर में संविधान के समानता के मूल्य पर सबसे ज्यादा खतरा है, जबकि 25% के अनुसार यह खतरा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, 32% के अनुसार धर्मनिरपेक्षता, 12% के अनुसार सामाजिक न्याय पर है तो वहीं 17% का मानना है कि ऐसा कोई खतरा है ही नहीं। मूल अधिकारों की बात की जाए तो 40% लोगों के लिए समानता का अधिकार सबसे महत्वपूर्ण है, 18% के लिए अभिव्यक्ति की आजादी, 25% के लिए सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार और 17% के लिए संवैधानिक उपचारों का अधिकार सबसे अहम है।

राजनीतिक ध्रुवीकरण और क्षेत्रवाद संविधान की सबसे बड़ी चुनौती

देश के 19% लोग मानते है कि आने वाले समय में संविधान के लिए सबसे बड़ी चुनौती तकनीकी और डिजिटल अधिकार हो सकती है। 32% के अनुसार यह चुनौती सामाजिक एवं आर्थिक असमानता है और 42% के अनुसार राजनीतिक ध्रुवीकरण और क्षेत्रवाद। सिर्फ 7% लोग ही यह मानते हैं कि पर्यावरण और जलवायु न्याय आने वाले समय में संविधान की चुनौती बनेगा।

2% लोगों के अनुसार आज का दिन सिर्फ औपचारिक कार्यक्रमों के लिए

हर साल संविधान दिवस मनाया जाता है लेकिन इसके उद्देश्य सभी के लिए अलग अलग है। 42% लोगों का मानना है कि लोगों को अधिकारों की जानकारी देने के लिए संविधान दिवस मनाया जाना चाहिए और 56% लोगों का मानना है कि नागरिकों को उनके कर्तव्यों के प्रति जागरूक करने के लिए यह दिन मनाया जाना चाहिए। वहीं 2% लोगों का यह भी मानना है कि इस दिन सिर्फ औपचारिक कार्यक्रमों का आयोजन होना चाहिए।

स्कूल-कॉलेज में मिलती है सबसे अधिक जानकारी

संविधान में अपने अधिकारों और कर्तव्यों समेत अन्य जानकारी लोगों को कहा से मिली है अगर यह देखा जाए तो सिर्फ 42% ही यह मानते है कि उन्हें स्कूल-कॉलेज में पढ़ाई के दौरान संविधान के बारे में बताया गया है। जबकि 24% के अनुसार उन्होंने मीडिया के जरिए और 2% के अनुसार उन्होंने नेताओं के भाषण से संविधान की जानकारी जुटाई है। 32% लोगों ने संविधान को पढ़कर उसको जानने की बात स्वीकार की है। राजनीतिक पार्टियों की बात करे तो सर्वे के अनुसार, भाजपा सबसे अधिक, 54% संविधान की रक्षा के लिए ज्यादा प्रतिबद्ध नजर आती है। वहीं कांग्रेस सिर्फ 38% और वाम दल 5% प्रतिबद्ध है। जबकि टीएमसी, डीएमके और सपा जैसे दलों की बात की जाए तो लोगों को लगता है कि यह पार्टीयां संविधान की रक्षा के प्रति सिर्फ 1% प्रतिबद्ध है।