
दुनियाभर के अध्ययनों में यह चेतावनी दी जाती रही है कि कम उम्र में ही बच्चों का बढ़ता स्क्रीन टाइम उनके मानसिक विकास को बाधित कर रहा है। न्यूयॉर्क से आई ताजा चेतावनी भी इसी से जुड़ी है। पीडियाट्रिक्स जर्नल में प्रकाशित 10,500 से अधिक बच्चों पर आधारित एक शोध में बताया गया है कि 12 साल से कम उम्र के बच्चों को स्मार्टफोन देना उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए उतना ही खतरनाक है, जितना किसी मासूम बच्चे के हाथ में कोई तेज धार वाली वस्तु दे दी जाए। शोध के अनुसार इस उम्र के बच्चों में स्मार्टफोन के चलते डिप्रेशन, अनिद्रा, मोटापा और खानपान व दिनचर्या में असंतुलन जैसे लक्षण मिले।
यह कहानी केवल अमरीका की ही नहीं है। स्मार्टफोन अब पेरेंटिंग का शॉर्टकट और स्टेटस सिंबल दोनों बन चुका है। बच्चों की जिद शांत करने से लेकर नवजात को खाना खिलाने तक हर काम में मोबाइल अब डिजिटल नैनी की भूमिका निभा रहा है। भारत में भी कई शोध सामने आ चुके हैं। एम्स के बाल मनोविज्ञान विभाग और देशभर के मेडिकल कॉलेजों द्वारा समय-समय पर हुए छोटे-बड़े अध्ययनों ने बच्चों के बढ़ते स्क्रीन टाइम के खतरों से आगाह किया है। वर्ष 2019 में एम्स की एक रिपोर्ट में सामने आया कि पांच साल से कम उम्र के बच्चों के अत्यधिक मोबाइल देखने से न केवल उनकी बोलचाल की क्षमता प्रभावित होती है बल्कि मानसिक विकास भी अवरुद्ध होता है। भारतीय घरों में एक सामान्य दृश्य है- माता पिता या दादा-दादी बच्चे को चुप कराने के लिए फोन पकड़ाते हैं। बड़ों को लगता है कि यह आधुनिकता का हिस्सा है, जमाना बदल गया है। डॉक्टर बताते हैं कि 10-12 साल से कम उम्र में बच्चे का मस्तिष्क विकासमान अवस्था में होता है।
यह समय होता है ध्यान विकसित होने का, भावनात्मक संतुलन सीखने का। वास्तविक दुनिया से जुडऩे का, लेकिन इसी दौर में जब बच्चे के हाथ में ब्लू स्क्रीन थमा दी जाती है तो धीरे-धीरे ध्यान की क्षमता घटती है, सोने-जागने की लय टूटती है, खाना समय पर नहीं होता। सबसे पहले बड़ों को पहल करनी होगी। पहले खुद को मोबाइल की दासता से छुटकारा पाना होगा यानी मोबाइल का इस्तेमाल उतना ही करें जितनी इसकी जरूरत हो। बच्चों का खेलना-कूदना और गिरना-उठना स्वाभाविक है।
उसे मोबाइल स्क्रीन की स्लाइडिंग में खोने न दें।सरकार की जिम्मेदारी भी कम नहीं। बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम गाइडलाइन को नीतिगत बनाना होगा। साथ ही स्कूलों में डिजिटल हेल्थ विषय को अनिवार्य बनाना होगा। सबसे ज्यादा जरूरी बच्चों के कंटेंट पर विज्ञापन व डेटा उपयोग की सख्त निगरानी की है। मोबाइल का जितना उपयोग शिक्षा के लिए जरूरी, उतना ही किया जाए। माता-पिता भी नो-फोन जोन बनाएं। कहानी, किताब, खेल और संवाद को प्राथमिकता दें। ध्यान यह भी रखें कि बढ़ते स्क्रीन टाइम से सेहत की समस्या बच्चों व बड़ों सबको हो सकती है।
Published on:
03 Dec 2025 05:19 pm
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