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अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त करने का दिन

यह पवित्र ग्रंथ सभी नागरिकों को निष्पक्ष न्याय की गारंटी देता है।

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डॉ. बी.आर. अम्बेडकर की 125वीं जयंती के अवसर पर, वर्ष 2015 में भारत सरकार ने 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में घोषित किया था। इसका उद्देश्य उन संवैधानिक मूल्यों एवं आदर्शों के बारे में नागरिकों को जागरूक बनाना है, जिन पर हमारा शासनतंत्र आधारित है। यह दिवस हमें अवसर देता है कि हम संविधान में निहित मूल्यों, अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को पुन: व्यक्त करें। तब से हर वर्ष 26 नवंबर को संविधान दिवस पूरे देश में मनाया जा रहा है। इस दिवस पर हम संविधान के ऐतिहासिक अंगीकरण को स्मरण करते हैं और डॉ. बी.आर. अम्बेडकर तथा संविधान सभा के सभी महान सदस्यों के योगदान के लिए उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।


हमें यह सदैव स्मरण रखना चाहिए कि भारतीय संविधान केवल संविधान सभा के केंद्रीय कक्ष में बैठकर नहीं लिखा गया था। हमारे संविधान के निर्माताओं ने दूरदर्शिता दिखाते हुए, न केवल अन्य संवैधानिक लोकतंत्रों के अनुभवों और विचारों को अपनाया, बल्कि लाखों-करोड़ों भारतीयों के सपनों और सुझावों को भी संविधान में स्थान दिया। नागरिकों के पत्रों, ज्ञापनों, याचिकाओं, पर्चों और प्रेस में व्यक्त विचारों ने भी संविधान निर्माण की प्रक्रिया को दिशा दी थी। इस प्रकार संविधान के निर्माण में संविधान सभा के सदस्यों के साथ साथ आम नागरिकों की भी सक्रिय भागीदारी रही।


हमारे आधुनिक संवैधानिक इतिहास के प्रारंभिक चरण में ही, देश के अलग-अलग हिस्सों में रहने वाले सामान्य भारतीयों ने संविधान को भावनात्मक रूप से अपनाया। निर्माण के समय जनता की यह व्यापक स्वीकृति ही शायद हमारे संविधान की स्थिरता का मूल कारण है। इस प्रकार निर्मित संविधान न केवल समय की कसौटियों पर खरा उतरा है, बल्कि एक नवजात राष्ट्र को जिन कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा, उनके बावजूद समय के साथ इसकी प्रतिष्ठा और बढ़ी है। भारतीय संविधान में हमारे स्वतंत्रता संग्राम की प्रेरणा, राष्ट्र की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक समझ तथा अन्य लोकतांत्रिक देशों के अनुभवों से मिली सीख की परिपक्वता निहित है। इसने नागरिकों को अपनी भागीदारी पर भरोसा दिया है और शासन प्रणाली की बुनियाद को मजबूत रखा है। हमारा संविधान स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के सार्वभौमिक मूल्यों पर आधारित है। हमारे संविधान की परिवर्तनशीलता इसकी सबसे बड़ी ताकत है।


यह पवित्र ग्रंथ सभी नागरिकों को निष्पक्ष न्याय की गारंटी देता है। इसने हमारी विविधता को सम्मान दिया है, हर व्यक्ति को गरिमा प्रदान की है और प्रत्येक नागरिक को अपने स्वप्न साकार करने का आत्मविश्वास दिया है। संविधान ने अनेक जनजातीय समुदायों को अपनी विशिष्ट संस्कृति, परंपराएं, जीवन-पद्धति और सामाजिक-राजनीतिक ढांचा सुरक्षित रखने का अधिकार भी प्रदान किया है। संविधान निर्माताओं ने यह भी समझा कि समय के साथ इसकी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए आवश्यकता पडऩे पर बिना इसके मूल मूल्यों और सिद्धांतों को क्षति पहुंचाए संशोधन संभव होने चाहिए। संविधान में अब तक हुए 106 संशोधन इस बात का प्रमाण हैं कि हमारा राष्ट्र उभरती चुनौतियों का सामना करने में कितना सक्षम और अनुकूलनीय है।


1950 में सभी वयस्कों को सार्वभौमिक मताधिकार देने से लेकर अधिकारों की प्रगतिशील न्यायिक व्याख्याएं प्रदान करने तक, भारतीय संविधान ने सामाजिक समावेशन को प्रोत्साहित करने, वंचित समुदायों को सशक्त बनाने और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने में ऐतिहासिक भूमिका निभाई है। सामाजिक और आर्थिक न्याय से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों ने अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण सहित अनेक ऐतिहासिक पहलों को आकार दिया है। भाषाई, सांस्कृतिक और धार्मिक संरक्षणों का प्रावधान संविधान की इस प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है कि समाज में बंधुत्व की भावना को निरंतर सुदृढ़ किया जाए।

भारत की संसद समाज के सभी वर्गों की आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए लगातार कार्यरत रही है। उसने ऐसे कानून बनाए और नीतियां तैयार की हैं जो सामाजिक न्याय और परिवर्तन को बढ़ावा देती हैं।संविधान एक पवित्र दस्तावेज है, इसे राजनीतिक दृष्टिकोण की संकीर्ण परिधि में नहीं देखा जाना चाहिए। संविधान देश के हर नागरिक का है- चाहे उसकी जाति, वर्ग, धर्म, लिंग, क्षेत्र या भाषा कुछ भी हो। जब हम एक अधिक न्यायपूर्ण, समानतापूर्ण, प्रगतिशील और विकसित भारत के निर्माण की ओर अग्रसर हैं, तब यह अनिवार्य हो जाता है कि हम इस दिन संविधान और उसके मूल्यों पर पुन: चिंतन करें और उसके निर्माताओं के प्रयासों को सम्मानित करते हुए अपने संकल्प को और दृढ़ करें कि इसके मूलभूत सिद्धांतों को और अधिक शक्ति, निष्ठा और प्रतिबद्धता के साथ पालन करें।