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सम्पादकीय : खेलों में मेंटल हेल्थ पर नीतियां समय की जरूरत

यह निर्णय न केवल साहसिक है, बल्कि वैश्विक स्तर पर मेंटल हेल्थ के प्रति बढ़ती जागरूकता को भी दर्शाता है। मगर, भारत और दक्षिण एशिया में मेंटल हेल्थ अब भी एक उपेक्षित मुद्दा है।

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जयपुर

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arun Kumar

Aug 01, 2025

खेल केवल शारीरिक क्षमता का प्रदर्शन नहीं, बल्कि मानसिक दृढ़ता की भी परीक्षा है। हाल में ब्रिटेन की 20 वर्षीय तैराक और पेरिस ओलंपिक कांस्य पदक विजेता आंद्रिया ने मेंटल हेल्थ के कारण खेल से ब्रेक लिया। यह निर्णय न केवल साहसिक है, बल्कि वैश्विक स्तर पर मेंटल हेल्थ के प्रति बढ़ती जागरूकता को भी दर्शाता है। मगर, भारत और दक्षिण एशिया में मेंटल हेल्थ अब भी एक उपेक्षित मुद्दा है।
मेंटल हेल्थ के कारण खेल से संन्यास लेने के उदाहरण विश्वभर में देखे जा सकते हैं। अमरीकी जिमनास्ट सिमोन बाइल्स ने 2020 टोक्यो ओलंपिक में मानसिक दबाव के चलते कुछ स्पर्धाओं से हटने का फैसला किया। ऑस्ट्रेलियाई तैराक इयान थोर्प ने 2006 में डिप्रेशन के कारण संन्यास लिया, हालांकि बाद में वापसी की। जापानी टेनिस खिलाड़ी नाओमी ओसाका ने 2021 में फ्रेंच ओपन के दौरान मेंटल हेल्थ के लिए ब्रेक लिया। ये उदाहरण दर्शाते हैं कि विकसित देशों में मेंटल हेल्थ को गंभीरता से लिया जाता है। वैश्विक स्तर पर मेंटल हेल्थ पर खर्च में भारी अंतर है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, अमरीका में प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य बजट का लगभग 10-12त्न (लगभग 1,200-1,500 डॉलर प्रतिवर्ष) मानसिक स्वास्थ्य पर खर्च होता है। यूरोप में यह आंकड़ा 8-10त्न (लगभग 800-1,000 यूरो) और ब्रिटेन में 9त्न (लगभग 700 पाउंड) है। जापान में 6-7त्न (लगभग 70,000 येन) और चीन में केवल 2-3त्न (लगभग 200-300 युआन) खर्च होता है, जो उनकी आय का अपेक्षाकृत कम हिस्सा है। दक्षिण एशिया में स्थिति चिंताजनक है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, श्रीलंका इस क्षेत्र में सबसे अधिक खर्च करता है (स्वास्थ्य बजट का 4त्न, लगभग 10 डॉलर प्रति व्यक्ति), जबकि पाकिस्तान सबसे कम (0.5त्न, लगभग 1 डॉलर)। भारत का खर्च 1त्न से कम (लगभग 2 डॉलर प्रति व्यक्ति) है, जो वैश्विक औसत से काफी नीचे है। खिलाडिय़ों के लिए भारत में मेंटल हेल्थ जांच या रिटायरमेंट की आयु सीमा का कोई स्पष्ट नियम नहीं है। सेना और अन्य क्षेत्रों में मानसिक स्वास्थ्य के लिए उम्र-आधारित रिटायरमेंट नीतियां हैं लेकिन, खेलों में ऐसी नीति का अभाव है। विकसित देशों जैसे अमरीका और ब्रिटेन में खिलाडिय़ों के लिए नियमित मनोवैज्ञानिक परामर्श और मेंटल हेल्थ स्क्रीनिंग अनिवार्य है। भारत में राष्ट्रीय खेल नीति 2025 में खेलों के लिए समग्र दृष्टिकोण की बात है, लेकिन मेंटल हेल्थ पर विशेष जोर नहीं है।
भारत को मेंटल हेल्थ के प्रति जागरूकता बढ़ाने और खिलाडिय़ों के लिए नीतियां बनाने की जरूरत है। स्कूलों से लेकर पेशेवर खेल तक, मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा और परामर्श को अनिवार्य करना होगा। दक्षिण एशिया में श्रीलंका का मॉडल, जहां कम संसाधनों में भी मेंटल हेल्थ पर ध्यान दिया जाता है, भारत के लिए प्रेरणा हो सकता है। खिलाडिय़ों की मानसिक सेहत को प्राथमिकता देकर ही भारत वैश्विक खेल मंच पर सही मायनों में चमक सकता है।