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संपादकीय :साइकिल सवारी की सुगम राह भी बनाएं

कोपेनहेगनाइज इंडेक्स-2025 ने भारत के अहमदाबाद शहर को दुनिया के टॉप 100 साइकिल-फ्रेंडली शहरों में शुमार किया है।

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जयपुर

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arun Kumar

Nov 21, 2025

साइकिल कभी आम आदमी की सवारी मानी जाती थी, लेकिन अब यह बड़ी-बड़ी गाडिय़ों की चकाचौंध में गायब-सी हो गई है। इसके पीछे सरकार, सिस्टम और हमारी सोच तीनों जिम्मेदार हैं। इन सबके बीच अच्छी खबर यह भी है कि कोपेनहेगनाइज इंडेक्स-2025 ने भारत के अहमदाबाद शहर को दुनिया के टॉप 100 साइकिल-फ्रेंडली शहरों में शुमार किया है। अहमदाबाद इस मुकाम पर पहुंचा है तो देश के दूसरे शहर भी ऐसा क्यों नहीं कर सकते, सवाल यह भी है। आखिर अहमदाबाद ने ऐसा क्या किया जो देश के अन्य शहर नहीं कर पाए?

इस सवाल का जवाब भी है। अहमदाबाद म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन ने साइकिलिंग को बढ़ावा देने के गंभीर प्रयास किए। माय बाइक और माय साइकिल जैसे पब्लिक बाइक शेयरिंग सिस्टम को मजबूत नेटवर्क दिया, साबरमती रिवर फ्रंट पर डेडिकेटेड साइकिल ट्रैक बनाए, पुराने शहर में भी संकरी गलियों को साइकिल-फ्रेंडली बनाया। जाहिर है, राजनीतिक इच्छाशक्ति मजबूत रही, फंडिंग लगातार मिली और सबसे बड़ी बात- क्रियान्वयन में कोई कोताही नहीं बरती गई। साइकिल अब वहां लोगों की स्मार्ट चॉइस बनती जा रही है। दूसरी तरफ कोलकाता, सूरत, जयपुर, कोटा, बेंगलूरु, चंडीगढ़ सबने बड़े प्लान बनाए, करोड़ों-अरबों रुपए पानी की तरह बहाए। लेकिन हुआ क्या? अनदेखी ने सब बेकार कर दिया। भारत में साइकिल को आम आदमी की गाड़ी ही समझा जाता रहा है, जबकि चीन और जापान में मंत्री, डॉक्टर, सीईओ सब साइकिल से दफ्तर जाते हैं। वहां साइकिल स्टेटस नहीं, स्मार्टनेस का प्रतीक है, लेकिन हम अभी भी स्टेटस सिंबल में फंसे हैं।

सबसे बड़ा सवाल यह है कि भारत में साइकिल सवारी को लोकप्रिय करने के लिए क्या किया जा सकता है? जवाब स्पष्ट है, अगर राष्ट्रीय साइकिल नीति बनाई जाए और हेल्थ पालिसी में साइकिल को शामिल किया जाए तो लोग इसे अपना सकते हैं। हर शहर में डेडिकेटेड साइकिल हाईवे अनिवार्य हों। कार पार्किंग पर टैक्स लगे। साइकिल पार्किंग फ्री और सिक्योर हो। स्कूलों में साइकिल एजुकेशन अनिवार्य की जाए। सबसे बड़ी बात यह कि इन प्रयासों से अगर देश में लोग साइकिल चलाना शुरू कर दें तो प्रदूषण भी 30 फीसदी तक कम हो सकता है। ईंधन के साथ-साथ चिकित्सा पर होने वाले खर्च पर भी एक हद तक लगाम लगेगी। जाहिर है इससे तेल आयात पर निर्भरता भी घटेगी।

नीदरलैंड में साइकिल से प्रति व्यक्ति 1000 यूरो सालाना बचत होती है। हम ऐसा क्यों नहीं कर सकते हैं? साइकिलें फिर से सड़कों पर लौट सकती हैं, लेकिन इसके लिए सरकार, प्रशासन और समाज- तीनों को अपनी प्राथमिकताएं बदलनी होंगी। यह सिर्फ यातायात नहीं, बल्कि जीवनशैली, स्वास्थ्य और पर्यावरण का मुद्दा है। साइकिल व इसके सवारों को वापस सम्मान दिलाना आज की सबसे जरूरी शहरी नीतियों में से एक होना चाहिए।