
भारत विश्व व्यापार संगठन का संस्थापक सदस्य है व इसकी बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधी पहलुओं (ट्रिप्स) संधि के अनुसार संबंधित कानून को सम्मत करने के लिए बाध्य है। फलस्वरूप भारत ने वर्ष 1999 से 2005 तक पेटेंट कानून में कुछ महत्त्वपूर्ण संशोधन किए और दवा, पेट्रोकेमिकल व एग्रोकेमिकल के क्षेत्र में प्रोडक्ट पेटेंट लागू किया। चूंकि पेटेंट की वैधता 20 वर्ष की होती है व इसके पश्चात पब्लिक डोमेन का हिस्सा बन जाता है, इसलिए दवा कंपनियों के पास इसके जेनेरिक प्रारूप को बाजार में सस्ते दामों में उपलब्ध करने का एक अवसर होता है। जेनेरिक दवाओं में समान खुराक के रूप में समान सक्रिय घटक की समान मात्रा होती है और उन्हें ब्रांडेड दवाओं के समान ही मरीज को दिया जाता है। जेनेरिक्स के आसानी से उपलब्ध होने पर मुख्यत: ह्रदय रोग, केंद्रीय तंत्रिका तंत्र संबंधित रोग, कैंसर, रेस्पिरेटरी डिजीज, डायबिटीज, ऑटोइम्यून डिसऑर्डर जैसी व्याधियों के मरीजों को लाभ मिलेगा व ज्यादा निर्माताओं की भागीदारी से गुणवत्ता युक्त दवा किफायती मूल्य पर मिलने से मरीजों व परिजनों को राहत मिलेगी। प्रधानमंत्री जनऔषधि योजना का विजन भी किफायती दामों पर गुणवत्तापूर्ण जेनेरिक दवाइयां उपलब्ध कराकर भारत के हर नागरिक के स्वास्थ्य सेवा बजट को कम करने का है।
पेटेंट एक्सपायरी के तुरंत बाद ही जेनेरिक दवा की मार्केट में लॉन्चिंग को सहज बनाने के लिए भारतीय पेटेंट एक्ट में एक महत्त्वपूर्ण प्रावधान 'बोलर प्रोविजन' है। किसी भी दवा उत्पाद के लॉन्च से पहले ड्रग रेगुलेटर की स्वीकृति अनिवार्य है जिसके लिए निर्माताओं को दवा की सेफ्टी व बायो-एक्विवैलन्स संबंधित डेटा प्रदान करना होता है। बोलर प्रोविजन के कारण उक्त स्वीकृति व स्टडीज पेटेंट एक्सपायर होने से पहले ही पेटेंट धारक के अनुमति के बगैर कानूनी रूप से संभव है। फलस्वरूप जैसे ही पेटेंट एक्सपायर होता है तो जेनेरिक दवा मार्केट में तत्काल उपलब्ध हो सकती है। इस वर्ष मार्च माह में बोह्रिंजर इंगेलहेम के एम्पाग्लिफ्लोजिन (टाइप-2 डायबिटीज की दवा) का पेटेंट समाप्त हुआ है और कुछ ही समय में इसके जेनेरिक वर्जन उपलब्ध हो गए हैं। भारत में डायबिटीज मरीजों की तादाद को देखते हुए इस दवा का जेनेरिक वर्जन मरीजों के लिए इलाज सुलभ हो रहा है व जो 25 एमजी दवा पहले लगभग 60 रुपए प्रति टेबलेट बाजार में उपलब्ध थी, आज लगभग 9 से 15 रुपए प्रति टेबलेट बाजार में उपलब्ध है। वर्ष 2020 व 2022 में रक्त के थक्कों के उपचार और रोकथाम के लिए इस्तेमाल की जाने वाली एंटीकोगुलेंट दवा रिवारोक्साबैन व एपिक्सैबन का पेटेंट एक्सपायर होने पर कंपनियां देश में इन दवाओ के जेनेरिक वर्जन उपलब्ध करा रही है।
कीट्रूडा (पेम्ब्रोलिजुमाब) जैसी इम्यूनोथेरेपी दवाओं के आगमन के साथ कैंसर के उपचार में क्रांतिकारी बदलाव आया है। भारत में 2017 में लॉन्च हुई कीट्रूडा ऑन्कोलॉजी के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण स्वीकृत दवा बन गई है। वर्तमान में भारत में यह दवा बहुत से मरीजों के लिए सामथ्र्य से बाहर है। पेटेंट होल्डर एमएसडी (मर्क) का भी प्रयास स्वीकृत इंडिकेशन्स की संख्या में विस्तार करके दवा को अधिकाधिक रोगियों के लिए सुलभ बनाना है। चूँकि पेम्ब्रोलिजुमाब का पेटेंट कुछ ही वर्षों में समाप्त होने वाला है, भारतीय कंपनियों द्वारा इस दवा का बायोसिमिलर बनाने से रोगियों को अधिक आसान व उन्नत कैंसर उपचार का लाभ मिल सकेगा। इसी क्रम में सेमाग्लूटाइड दवा है जो कि रक्त शर्करा के स्तर के नियंत्रण व वजन घटाने और प्रबंधन में मदद करती है। इसके बेस पेटेंट वैधता की अगले वर्ष में समाप्ति की चर्चा दवा उद्योग में है। उल्लेखनीय है कि निकट भविष्य में कई दवाओं के पेटेंट समाप्त होने को हैं जो कि जेनेरिक दवा उत्पादों की उप्लब्धता का अवसर प्रदान करेंगे। कुछ महत्त्वपूर्ण पेटेंट की समाप्ति भारतीय जेनेरिक दवा बाजार के लिए एक सकारात्मक अवसर है। इन दवाओं की समय रहते पहचान करना, कम कीमत व गुणवत्ता युक्त जेनेरिक्स की लॉन्चिंग स्ट्रेटेजी तैयार करना महत्त्वपूर्ण पहलू है जो जेनेरिक दवा निर्माण व विपणन को बढ़ावा देकर बाजार में उनके समय पर प्रवेश में मदद करें।
Updated on:
13 Jul 2025 07:27 pm
Published on:
13 Jul 2025 04:50 pm
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