
डॉ. प्रभात ओझा, वरिष्ठ पत्रकार, एवं स्तंभकार -बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना पर आया फैसला चौंकाने वाला नहीं है। वहां की हलचल पर नजर रखने वाले विश्लेषक कुछ इसी तरह की उम्मीद कर रहे थे। शेख हसीना के साथ उनके पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमां खान कमाल और पूर्व पुलिस महानिरीक्षक चौधरी अब्दुल्ला अल-मामून पर इंटरनेशनल क्राइम्स कोर्ट ट्रिब्यूनल (आइसीटी, बांग्लादेश) ने फैसला सुनाया। शेख हसीना और असदुज्जमां खान कमाल अपने देश की घटनाओं के बाद पिछले 15 महीने से भारत में हैं। दोनों पर फांसी की सजा किस तरह से अमल में लाई जाएगी, यह विचारणीय है। चौधरी अब्दुल्ला अल-मामून ने सरकारी गवाह बनना स्वीकार कर लिया और सिर्फ 5 साल जेल की सजा का हकदार बना है।फैसला देने वाला बांग्लादेश का इंटरनेशनल क्राइम कंट्रोल ट्रिब्यूनल सिर्फ कहने को अंतरराष्ट्रीय है।
इसका अंतरराष्ट्रीय संगठनों से कुछ लेना-देना नहीं है। दूसरी ओर किसी देश में शरण लिए अथवा भगोड़े को वापस भेजने के मामले में अंतरराष्ट्रीय कानून लागू होते हैं। शेख हसीना के मुद्दे पर भी इन अंतरराष्ट्रीय कानूनों के हिसाब से प्रत्यर्पण संधि की कानूनी प्रक्रिया लागू होगी। इसमें सुरक्षा मूल्यांकन और मानवाधिकार की शर्तें भी हैं। यह सही है कि भारत और बांग्लादेश के बीच प्रत्यर्पण समझौता है। हालांकि मामला पूरी तरह आपराधिक होने पर ही यह लागू करने की व्यवस्था है। राजनीतिक रंग वाले मसलों पर यह बाध्यता नहीं होगी। अंतरराष्ट्रीय कानून यह मौका देता है कि राजनीतिक प्रतिशोध से जुड़े मामलों में किसी भी व्यक्ति को उसके देश वापस नहीं भेजा जाए। शेख हसीना दक्षिण एशिया में सबसे अधिक समय से सत्ता में आसीन नेताओं में से एक रही हैं। उन्होंने 15 वर्षों तक शासन किया। उनके भारत आने के बाद बांग्लादेश में अभी तक कोई निर्वाचित सरकार भी नहीं है।
यहां देखना होगा कि इस सजा के पहले हसीना ने क्या कहा था। भारतीय पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा कि उनकी स्वदेश वापसी वहां के राजनीतिक माहौल पर निर्भर करती है। बांग्लादेश से हमारे भविष्य के रिश्ते और शेख हसीना की वापसी भी खुद वहां के हालात पर निर्भर करेंगे। फिलहाल तो ये ठीक नहीं लगते। इसकी शुरुआत बांग्लादेश के अंतरिम नेता मुहम्मद यूनुस के एक पाकिस्तानी जनरल साहिर शमशाद मिर्जा को एक विवादास्पद नक्शा भेंट करने से हुई। पाकिस्तान के जॉइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी मिर्जा बांग्लादेश आए थे। कथित रूप से विस्तृत बांग्लादेश के इस नक्शे में पूर्वोत्तर भारत का एक हिस्सा दिखाया गया। इसमें भारत के असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों को बांग्लादेश का हिस्सा दिखाने का दुस्साहस किया गया। ऐसा पहली बार नहीं हुआ कि जब मुहम्मद यूनुस ने भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र पर टिप्पणी की। इस वर्ष अप्रेल में भी अपनी चीन यात्रा के दौरान उन्होंने कहा था कि भारत के सात राज्य, भारत का पूर्वी भाग… चारों ओर से स्थल-रुद्ध देश हैं। उनके पास समुद्र तक पहुंचने का कोई रास्ता नहीं है।
दरअसल, वे भारत के उस सिलीगुड़ी कॉरिडोर यानी 'चिकननेक' का नाम लेकर भारत को धमकी दे रहे थे। उसके ठीक बाद हमारे विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बिम्सटेक समूह के लिए 'कनेक्टिविटी हब' के रूप में भारत के पूर्वोत्तर का महत्त्व बताया था। बिम्सटेक में भारत के साथ खुद बांग्लादेश और भूटान, म्यांमार, नेपाल, श्रीलंका और थाईलैंड भी हैं। ऐसे में बांग्लादेश को खूब समझ होनी चाहिए कि वह ऐसे मजबूत समूह को नाराज कर क्या कर सकेगा। अपनी सरकार के खिलाफ हिंसा के कारण प्रधानमंत्री शेख हसीना भारत आईं। अब उन्हें फांसी की सजा देने के साथ ही बांग्लादेश फिर से हिंसा की भेंट चढ़ चुका है। इसके और अधिक तीव्र होने की आशंका है। अपने देश के हालात का हवाला देकर वह भारत में रह सकती हैं। जान का खतरा होने पर वैसे भी राजनीतिक लोगों के अपने देश से निर्वासित होने पर शरण देने को अंतरराष्ट्रीय कानून मान्यता देते हैं। फिलहाल बांग्लादेश की अंतरिम सरकार का नेतृत्व करने वाले मुहम्मद युनूस पहले ही देश में चुनाव कराने की घोषणा कर चुके हैं। शेख हसीना की पार्टी को चुनाव में शामिल होने दिया जाए, इस पर भी बहुत कुछ निर्भर करेगा। अभी तो हिंसा में उबलते देश में चुनाव हो, इसी पर ही संशय है।
अभी बांग्लादेश भी पाकिस्तान की तरह कट्टरता की राह चलता दिख रहा है।ढाका का, जो सोहरावर्दी गार्डन बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम, पाकिस्तानी सेना के सरेंडर और शेख मुजीबुर रहमान के ऐतिहासिक भाषण से जुड़ा रहा है, वहां पिछले दिनों यूनाइटेड खतमे नबुवत काउंसिल ने एक कॉन्फ्रेंस कर इसे और रफ्तार दी है। इसमें पाकिस्तान से आए 35 कट्टरपंथियों के समूह के साथ पांच देशों के चरमपंथी शामिल हुए। इस कॉन्फ्रेंस में जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम पाकिस्तान के अध्यक्ष मौलाना फजलुर रहमान और अहले सुन्नत वल जमात के वरिष्ठ नेता मौलाना औरंगजेब फारूकी ने बांग्लादेशी बहुसंख्यकों को अपना भाई बताया। दोनों ने बांग्लादेश के लिए ईशनिंदा कानून लागू करने की जरूरत बताई। साथ ही बांग्लादेश के धर्मगुरुओं से कहा कि वे अहमदिया समुदाय को गैर-मुस्लिम घोषित करने के लिए पाकिस्तानी हुक्मरानों पर दबाव बनाएं। इस तरह के कई कारण फिलहाल हमारे पड़ोसी के आंतरिक हालत सामान्य होते नहीं बता रहे।
Published on:
18 Nov 2025 12:26 pm
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