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सही मायनों में सत्य और नए रहस्योंको खोजने की कला है ‘अनुवाद’

मनमोहन हर्ष, स्वतंत्र लेखक ,एवं स्तंभकार

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दुनिया के करीब 200 देशों में रहने वाले 820 करोड़ नागरिकों के मध्य 7 हजार से अधिक भाषाएं और बोलियां प्रचलित हैं। भाषाई विविधता के इस अबूझ सागर में डुबकी लगाकर सभी देशों के नागरिकों को उनकी समझ वाली भाषा में मानवीय विकास के प्रतिमानों को सतत साझा करते हुए वैश्विक प्रगति के नित नए आयाम तय करते जाने की डगर कितनी दुरूह और चुनौतीपूर्ण है, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। भाषाई विविधता के इस मायाजाल को तोड़कर पूरी दुनिया को एकसूत्र में बांधने के अश्वमेघ में जुटे हैं, अलग-अलग देशों में बसे ऐसे लाखों विशेषज्ञ, जो स्वयं की मातृभाषा के साथ ही दूसरी भाषाओं के भी गहरे जानकार हैं। भावानुवाद के ये मर्मज्ञ पलक झपकते ही अपनी अनुवाद कला से लक्षित वर्ग की समझ वाली भाषा में समान भाव, शब्द और अर्थों को खोजकर संसार के लाखों-करोड़ों लोगों के दिलों को जोड़ने के मिशन में रात-दिन जुटे हैं।

संयुक्त राष्ट्र की ओर से दुनिया के इस भाषाई महासागर के तिलिस्म को तोड़कर इसमें बसी अद्भुत पूंजी को लोगों में बांटने में जुटे इन बहुभाषाविज्ञ अनुवादकों के योगदान को रेखांकित करने के लिए प्रतिवर्ष 30 सितंबर को ‘अंतरराष्ट्रीय अनुवाद दिवस’ मनाया जाता है। दुनिया में अनुवादकों के हितों के लिए 1953 से कार्यरत फेडरेशन ऑफ इंटरनेशनल ट्रांसलेटर्स (एफआइटी) ने इस वर्ष के इंटरनेशनल ट्रांसलेशन डे की थीम ‘सेलिब्रेटिंग ट्रांसलेशन, पीस एंड ट्रस्ट’ रखी है, जिसका ‘भावानुवाद’ करने का प्रयास करें तो ‘दुनिया में अनुवाद से शांति और विश्वास का जयघोष’ जैसा गहरा भाव और अर्थ हमारे मानसिक पटल पर दस्तक देता है।

मौजूदा समय में विश्व बिरादरी के कई देशों के बीच आपसी संबंधों में खटास के कारण दुनिया में व्याप्त अशांत, उथलपुथल और अस्थिर माहौल में ‘वैश्विक शांति, संचार और संबंध’ अविश्वास की गहरी गिरफ्त के शिकार हैं। इसी कारण इस साल इंटरनेशनल ट्रांसलेशन डे की थीम में देशों के बीच मानवीय विश्वास पर फोकस किया गया है। देशों के बीच मध्यस्थता, संवाद और संचार के माध्यम से अविश्वास की खाई को पाटने में अनुवादकों की अहम भूमिका है, जो सही मायने में भाषाई समुद्र के मंथन से भावानुवाद का अमृत संजोकर दुनिया के देशों के बीच दूरियों को पाटने का काम कर रहे हैं। दुनिया के किसी एक हिस्से में प्रयुक्त होने वाली भाषा में उतारी गई कोई गूढ़ बात किसी अन्य छोर पर प्रचलित भाषा के जानकारों के लिए तब तक ‘काला अक्षर भैंस समान’ ही होती है, जब तक कि उसका भलीभांति भावानुवाद करके दूसरे पक्ष के लोगों के दिल में उतरने लायक नहीं बना दिया जाता।

‘भावानुवाद’ सही मायने में सत्य और नए रहस्यों को खोजने की कला है। भाषाएं अनुवाद के रथ पर सवार होकर दुनिया का तीर्थाटन करती हैं, तो भावानुवाद के विशेषज्ञ ‘अनुवादक‘ निःसंदेह देवदूत का रोल निभाते हैं। पूरे विश्व में करीब 7 हजार भाषाएं और बोलियां प्रचलित हैं। दुनिया की इन ज्ञात भाषाओं में से 40 प्रतिशत का अस्तित्व खतरे में है क्योंकि इनके जानकार एक हजार से भी कम बचे हैं। वहीं अंग्रेजी, मंदारिन चाइनीज, हिन्दी, स्पेनिश, फ्रैंच, स्टैंडर्ड अरेबिक, बंगाली, रशियन, पुर्तगाली और इंडोनेशियाई जैसी 10 शीर्ष भाषाओं सहित कुल 23 भाषाएं ऐसी हैं, जो आधी दुनिया द्वारा प्रयोग में ली जाती हैं।

अनुवाद महज शब्दकोश की सहायता से किसी शब्द का दूसरी भाषा में समानार्थी शब्द ढूंढने जैसा आसान काम नहीं है। वास्तविकता में अनुवादकों को अपने बहुभाषी ज्ञान के समुद्र में हर बार गहरी डुबकी लगाकर दोनों भाषाओं में उस मर्म को तलाशना होता है, जो उन भाषाओं के प्रयोगकर्ताओं के जेहन में बसे भावों का सही-सही प्रतिनिधित्व करता है। दोनों भाषाओं का अनुवादक के मन में समान गहराई पर जब तक मेल नहीं हो जाता तब तक ‘भावानुवाद‘ का अंकुर नहीं फूटता। मन के भीतर दोनों भाषाओं के भावों की तह में जरा-सी भी ऊँच-नीच हो तो अनुवाद बेमेल रह जाता है।