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सम्पादकीय : रावण दहन ही काफी नहीं, राम से सीखना ज्यादा जरूरी

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ताजा रिपोर्ट इन्हीं बुराइयों को लेकर चिंतित करने वाली तस्वीर पेश करती है।

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दशहरा पर्व, भारतीय संस्कृति के ऐसे अध्याय से जुड़ा है जिसमें अधर्म पर धर्म की और असत्य पर सत्य की विजय का संदेश छिपा है। समाज में व्याप्त बुराइयों के प्रतीक के रूप में हर बार अधर्म व अन्याय के प्रतीक रावण का पुतला दहन करने की परिपाटी बरसों से चली आ रही है। लेकिन बड़ा सवाल यह है क्या सिर्फ पुतला दहन की रस्म अदायगी ही काफी है? जाहिर है, समाज में गहरे से घर करती जा रही बुराइयों का दहन ज्यादा जरूरी हो गया है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ताजा रिपोर्ट इन्हीं बुराइयों को लेकर चिंतित करने वाली तस्वीर पेश करती है। रिपोर्ट बताती है कि देश में अपराधों में 7.2 फीसदी कुल बढ़ोतरी के साथ महिला, और बच्चों के खिलाफ अपराधों में भी बढ़ोतरी हुई है। बच्चों के खिलाफ 9.2 प्रतिशत व महिलाओं के खिलाफ 0.7 प्रतिशत अपराध बढ़े हैं।
िकसी भी समाज को सभ्य नहीं कहा जा सकता यदि वहां महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध कम होने के बजाय बढ़ रहे हों। बुजुर्गों के साथ होने वाले अपराधों में 2.3 फीसदी कमी जरूर राहत देने वाली है। महिलाओं के साथ अपराध बढ़ रहे हैं तो लगता है कि आधी दुनिया को बराबरी के हक की दुहाई कोरी साबित हो रही है। और बच्चों के प्रति अपराध से लगता है कि हमारा वर्तमान तो खतरे में है ही भविष्य भी अच्छे संकेत देेने वाले नहीं है। अपराधों के बढ़ते ग्राफ के बीच अहंकार, लालच, क्रोध, वासना, अन्याय, अत्याचार, असत्य, मोह, ईष्र्या और स्वार्थ जैसी इन बुराइयों के खात्मे को लेकर दशहरा पर्व सचमुच आत्ममंथन की सीख देता है। यह सच है कि सरकार और समाज, दोनों के स्तर पर इन तमाम बुराइयों से लडऩे के प्रयास लगातार हो रहे हैं। महिला सुरक्षा के लिए 'निर्भया फंड’, फास्ट ट्रैक अदालतें और हेल्पलाइन नंबर जैसी पहल भी हुई हैं। बच्चों की सुरक्षा के लिए 'पॉक्सो कानून’ को और सख्त बनाया गया है। बुजुर्गों की देखभाल के लिए भी कठोर कानून बने हैं। लेकिन केवल कानून और कल्याणकारी योजनाएं होना ही काफी नहीं। बुराइयां कम होंगी तो अपराध भी स्वत: ही कम हो जाएंगे। ऐसे में हर व्यक्ति को अपने भीतर झांकना होगा। यह तलाशना होगा कि वह खुद किन-किन बुराइयों का हिस्सा है।
रावण दहन के वक्त हर किसी को एक तरह से यह अपने भीतर बैठे रावण को जलाने का संकल्प होगा। विजयदशमी पर्व हमें भरोसा दिलाता है कि अंधकार चाहे कितना ही घना हो एक दीपक उसकी सत्ता को चुनौती देेने के लिए काफी है। राम के आदर्शों को जीवन में अपनाकर बुराइयों को चुनौती देनी होगी। दशहरा तब जाकर ही बुराई पर अच्छाई की विजय का उत्सव बन सकेगा।