
असीम मुनीर बने CDF (फोटोःIANS)
पाकिस्तान की सरकार ने फील्ड मार्शल जनरल असीम मुनीर के कार्यकाल को सीमा बंधन से मुक्त कर दिया है। मुनीर को Chief of Defense Forces बनाने के लिए शरीफ सरकार ने पाकिस्तान के संविधान में संशोधन किया है। इस नए संशोधन विधेयक के तहत राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी, प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की सलाह पर आसिम मुनीर को CDF पद पर नियुक्त करेंगे। पाक सरकार का कहना है कि सेना के बीच बेहतर सामंजस्य स्थापित करने के लिए यह पद बनाया जा रहा है, जिससे तीनों सेनाएं (थल सेना, नौसेना और वायु सेना) सिंगल कमांड के अंतर्गत काम कर सके। सामरिक मामलों विशेषज्ञों का कहना है कि यह संवैधानिक संशोधन पाकिस्तान में नए सैन्य शासन युग की शुरुआत है।
भारत के विभाजन के कुछ साल बाद ही पाकिस्तान में पहला मार्शल लॉ लागू हो गया था। साल 1958 में जनरल अयूब खान ने राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा को हटाकर मार्शल लॉ लागू किया। यह पाकिस्तान का पहला सैन्य हस्तक्षेप था, जो 1958 से 1971 तक चला। इस दौरान 25 मार्च 1969 को अयूब ने पद से इस्तीफा देकर सत्ता याह्या खान को सौंप दी थी।
वहीं, दूसरा सैन्य तख्तापलट साल 1977 में हुआ। जब जनरल जिया-उल-हक ने प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो की सरकार को उखाड़ फेंका। जिया का शासन 1977 से 1988 तक रहा। तीसरा तख्तापलट 1999 में हुआ। भारत के हाथों कारगिल की लड़ाई हारने के बाद जनरल परवेज मुशर्रफ और तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बीच टकराव की स्थिति बन गई थी। इसके कारण 1999 में मुशर्रफ ने लोकतांत्रिक सरकार का तख्तापलट किया। मुशर्रफ का शासन 2008 तक चला।
पाकिस्तान में 2008 के बाद से कोई सैन्य अफसर भले ही सत्ता के शीर्ष पर भले ही काबिज न हो, लेकिन सत्ता की डोर हमेशा रावलपिंडी स्थित सैन्य मुख्यालय GHQ में बैठे जनरल के पास होती है। पाकिस्तान में जब-जब लोकतांत्रिक सरकार ने पाकिस्तान की सेना चुनौती देने की कोशिश की, तब-तब वहां लोकतांत्रिक सरकार गिर दी गई। पाकिस्तान की मौजूदा सरकार को देश के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने हाल ही में हाइब्रिड गवर्मेंट शब्द का इस्तेमाल किया था। हाइब्रिड से उनका मतलब एक ऐसा सिस्टम है, जिसमें सैन्य नेतृत्व और नागरिक सरकार मिलकर फैसले लेते हैं।
असीम मुनीर ने साल 1986 में पाकिस्तान की सेना में एंट्री ली। पाकिस्तान में उस समय जनरल जिया उल हक की सत्ता थी। इसके बाद से मुनीर सीढ़ी दर सीढ़ी सेना में ऊंचे पदों पर चढ़ते गए। अक्टूबर 2018 में, जनरल कमर जावेद बाजवा ने उन्हें 28वें डीजी ISI बनाया, लेकिन जून 2019 में तत्कालीन पीएम इमरान खान ने उन्हें पद से हटा दिया। कहा गया कि इमरान खान के रिश्ते सेना के साथ बिगड़ चुके हैं।
सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा और DG ISI असीम मुनीर को लगने लगा था कि इमरान खान की सरकार कई मोर्चों पर सेना के हितों को ध्यान में नहीं रख रही है। अप्रैल 2022 तक संबंध बहुत बिगड़ चुके थे। इसके बाद पाकिस्तान की संसद में इमरान सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया। अविश्वास प्रस्ताव हारने के कुछ दिनों बाद इमरान खान की तोशाखाना मामले में गिरफ्तारी हुई।
इसी साल नवंबर में बाजवा रिटायर हुए और असीम मुनीर देश के चार-स्टार जनरल बने और 11वें चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ बने। मई 2025 में भारत संग सैन्य झड़प के बाद पाकिस्तान की सरकार ने उन्हें फील्ड मार्शल के पद से नवाजा। अब एक बार फिर उन्हें CDF नियुक्त किया जाएगा।
सीडीएफ का पद मुनीर की सेना पर पकड़ को और मजबूत करेगा, जिससे उन्हें नियुक्तियों, पदोन्नतियों और सैन्य अभियानों पर नियंत्रण मिल जाएगा। इसके साथ ही वो पाकिस्तान की परमाणु सेनाओं के प्रमुख की नियुक्ति करने के भी अधिकार रखेंगे। नए विधेयक के अनुसार, मुनीर के 27 नवंबर के बाद इस सर्वशक्तिशाली पद को संभालने की संभावना है, जब संयुक्त चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी के अध्यक्ष का कार्यकाल समाप्त हो जाएगा। साथ ही, शहबाज शरीफ सरकार ने संविधान में यह संशोधन किया है कि फील्ड मार्शल का पद और उससे संबंधित विशेषाधिकार आजीवन रहेंगे।
नए विधेयक में प्रस्तावित नए पदों पर आजीवन कानूनी सुरक्षा सुनिश्चित होगी और वरिष्ठ सैनिकों को सेवानिवृत्ति के बाद भी न्यायिक जांच या राजनीतिक जवाबदेही से मुक्त रखा जा सकेगा। इसका मतलब साफ है कि असीम पर कभी भी कोई मुकदमा नहीं चलाया जा सकेगा। इसके साथ ही पाकिस्तान की विधायिका अब सैन्य निर्णयों पर प्रश्न उठाने या उन्हें रद्द करने में सक्षम नहीं होगी। प्रमुख नियुक्तियों में सैन्य सिफारिशों को ज्यादा प्राथमिकता दी जाएगी। प्रधानमंत्री की सलाह केवल औपचारिकता मात्र रहेगी।
Published on:
10 Nov 2025 07:00 am
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