
Bastariya Thali: महुआ से लेकर तेंदू तक... जंगल की बस्तरिया थाली में मिलती है प्राकृतिक सेहत बस्तरिया (photo-patrika)
Bastariya Thali: छत्तीसगढ़ के जगदलपुर जिले में विगन डाइट को सेलिब्रिटी और सक्षम लोगों की पहुंच में बताया जाता है, पर विश्व की पुरातन परंपराओं से जुड़े बस्तर के आदिवासी भी विगेन हैं। बस्तर के आदिवासियों की खानपान की परंपरा यह बताती है कि दुनिया के सबसे पुराने विगेन तो वही हैं। बस्तर के घने जंगलों और आदिवासी समुदायों की सदियों पुरानी खान-पान की परंपरा पहले से ही विगन जीवनशैली का प्रतीक है।
महुआ के फूलों से बने लड्डू, तेंदू पत्तों की सब्जी और चावल-दाल की साधारण थाली छत्तीसगढ़ के ग्रामीण और आदिवासी इलाकों की पहचान हैं। ये व्यंजन न केवल स्वादिष्ट हैं बल्कि पौष्टिकता से भरपूर भी हैं। महुआ के फूलों में प्राकृतिक शर्करा, आयरन और ऊर्जा प्रचुर मात्रा में होती है, जो शरीर को ताकत देती है। तेंदू पत्तों की सब्जी में फाइबर, कैल्शियम और एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं, जो पाचन और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं।
ग्रामीण इलाकों में यह थाली दैनिक भोजन का हिस्सा है - न कम तेल, न मसाले, सिर्फ प्रकृति से मिली सादगी और सेहत का मेल। स्थानीय लोग मानते हैं कि जंगल से मिलने वाला यह भोजन ही उनकी जीवनशैली को संतुलित और स्वस्थ बनाए रखता है। आज जब ऑर्गेनिक फूड की मांग बढ़ रही है, तब छत्तीसगढ़ की यह ‘जंगल थाली’ प्राकृतिक पोषण का उत्कृष्ट उदाहरण बनकर सामने आ रही है।
महुआ के फूलों से बने लड्डू, तेंदू पत्तों की सब्जी और चावल-दाल की साधारण थाली, ये न केवल पौष्टिक है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और पशु कल्याण का भी संदेश देते हैं। बस्तर के ये व्यंजन साबित करते हैं कि विगन डाइट जटिल नहीं, बल्कि प्रकृति के साथ सामंजस्य का सरल तरीका है।
बस्तरिया थाली में न दूध और न ही अंडा है। बस्तर जो अब विकास-सांस्कृतिक संरक्षण का प्रतीक बन चुका है। यहां की 58त्न भूमि जंगलों से आच्छादित है, और आदिवासी समुदाय जैसे गोंड, मुरिया और भतरा अपनी आजीविका के लिए वन उत्पादों पर निर्भर हैं। इनमें से अधिकांश व्यंजन प्राकृतिक रूप से विगन हैं।
महुआ लड्डू, महुआ के फूलों से बने ये लड्डू विटामिन्स और मिनरल्स से भरपूर होते हैं। बस्तर फूड्स जैसी स्थानीय पहलें इन्हें स्नैक्स, कुकीज और न्यूट्री बार के रूप में बाजार तक पहुंचा रही हैं, जिससे 350 से अधिक ग्रामीण महिलाओं को रोजगार मिला है। एक अन्य लोकप्रिय व्यंजन तेंदू पत्ता सब्जी है, जो तेंदू वृक्ष की पत्तियों से बनती है।
यह खाने में हल्की, पौष्टिक और जंगल से सीधे टेबल तक पहुंचने वाली डिश है। इसी तरह बफौरी चना दाल से बनी स्टीम्ड होती है जो तलने के बजाय भाप में पकाई जाती है, इसे हेल्दी विगन ऑप्शन बनाती है। आदिवासी थाली में चावल, पेज, उबले बाजरा या मिलेट्स का तरल भोजन, जंगली कंद-मूल, बांस के कोपले की सब्जी और चटनी का मिश्रण प्रमुख है।
छत्तीसगढ़ के जंगलों की थाली सिर्फ स्वाद में ही नहीं, बल्कि पौष्टिकता में भी बेमिसाल है। यहां के वनों में मिलने वाले महुआ, चार, तेंदू, कुसुम, कोचई, झुरका, कोंदो, कोदो-कुटकी जैसे लघु वनोपज और वन्य खाद्य पदार्थ स्थानीय लोगों के भोजन का हिस्सा हैं। ये पारंपरिक खाद्य न केवल शरीर को ऊर्जा देते हैं, बल्कि कई बीमारियों से बचाव में भी मददगार होते हैं।
गोंड, मुरिया, बैगा और अन्य जनजातीय समुदायों की थाली में जंगल से मिलने वाले पत्ते, जड़ी-बूटियां और फल प्रमुख भूमिका निभाते हैं। महुआ के फूल से बनी लड्डी या पेय, कुसुम के बीज का तेल, और कोदो-कुटकी से बनी खिचड़ी विटामिन, फाइबर और मिनरल्स से भरपूर होती है।
वनवासियों का मानना है कि जंगल की थाली ही उन्हें कठिन परिस्थितियों में भी ताकत और सहनशक्ति देती है। आज जब आधुनिक खानपान में मिलावट और रासायनिक तत्व बढ़ रहे हैं, तब जंगल की यह सादी लेकिन प्राकृतिक थाली सेहत और परंपरा दोनों का अद्भुत संगम प्रस्तुत करती है।
Updated on:
02 Nov 2025 12:33 pm
Published on:
02 Nov 2025 12:32 pm
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