
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप। (फोटो- The Washington Post)
अमेरिका में दूसरी बार सत्ता संभालने के बाद से राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप तीन देशों में अपनी सेना का प्रयोग कर चुके हैं। पिछले नौ महीनों में उन्होंने ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर बमबारी की। वहीं, यमन में हूती विद्रोहियों पर हमला किया। इसके अलावा, वेनेजुएला में दर्जनों कथित ड्रग तस्करों को मार गिराया।
अब ट्रंप ने अगला टारगेट भी सेट कर लिया है। जिसके लिए उन्होंने अपनी सेना को पहले से तैयार रहने को कहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति ने नाइजीरिया को सीधी धमकी दे डाली है।
उन्होंने कहा है कि अगर वहां ईसाइयों की हत्या नहीं रोकी गई, तो अमेरिका नाइजीरिया पर हमला कर देगा। ट्रंप ने यह तक कह दिया है कि अमेरिका का हमला बेहद घातक होगा।
अगर ट्रंप नाइजीरिया में हमला कर देते हैं तो यह पहली बार होगा, जब अमेरिका धार्मिक मकसद से किसी देश में अपनी सेना की शक्ति का इस्तेमाल करेगा। हालांकि, अभी यह कहना मुश्किल है कि राष्ट्रपति नाइजीरिया में कार्रवाई को लेकर कितने गंभीर हैं।
पेंटागन ने ट्रंप को यह सिग्नल दे दिया है कि अमेरिकी सेना कार्रवाई की तैयारी में जुट गई है। एक तरफ जहां ट्रंप ने दूसरे देशों पर अमेरिकी कार्रवाई को सही ठहराया है, वहीं दूसरी तरफ इन हमलों ने स्टीव बैनन और टकर कार्लसन जैसे उनके कुछ सबसे कट्टर समर्थकों के बीच आक्रोश भी पैदा कर दिया है।
इस वक्त यह भी कहा जा सकता है कि अमेरिका में ट्रंप के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है। एक तरफ उन्हें अपने समर्थकों की अपेक्षाओं को पूरा करना होगा, जिन्होंने 'अमेरिका फर्स्ट' और 'हमेशा चलने वाले युद्धों' को समाप्त करने के उनके वादों पर भरोसा किया है।
दूसरी तरफ, उन्हें वैश्विक मंच पर एक प्रभावशाली नेता के रूप में अपनी छवि बनाकर रखनी होगी और अमेरिका के हितों की रक्षा करनी होगी। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि ट्रंप अमेरिकी कार्रवाई और अपने समर्थकों के बीच कैसे संतुलन बना पाते हैं।
कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस में अमेरिकन स्टेटक्राफ्ट प्रोग्राम के निदेशक क्रिस्टोफर चिविस ने ट्रंप की विदेश नीति पर प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि ट्रंप प्रशासन की विदेश नीति पिछले कार्यकाल की तुलना में अधिक आक्रामक है। कई लोगों को उम्मीद थी कि अमेरिका अब संयम विदेश नीति अपनाएगा लेकिन फिलहाल हम इस मामले में बिलकुल उलट होता हुए देख रहे हैं।
उधर, व्हाइट हाउस का तर्क है कि ट्रंप ने अपने अमेरिका फर्स्ट एजेंडे को लागू करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। उन्होंने निष्पक्ष व्यापार समझौतों, नाटो सहयोगियों के रक्षा खर्च में वृद्धि और अवैध नशीले पदार्थों की तस्करी करने वाले तस्करों के खिलाफ कार्रवाई कर अमेरिका को फायदा पहुंचाया है।
बता दें कि मादक पदार्थों की तस्करी करने वालों के खिलाफ यह अभियान अब भी जारी है। पेंटागन प्रमुख पीट हेगसेथ ने मंगलवार को बताया कि अमेरिका ने पूर्वी प्रशांत महासागर में अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र में एक और जहाज पर हमला किया, जिसमें दो लोग मारे गए, जबकि किसी भी अमेरिकी कर्मी को कोई नुकसान नहीं पहुंचा।
ट्रंप ने ईरान के प्रमुख परमाणु ठिकानों पर हमला कराकर उसके परमाणु कार्यक्रम को काफी पीछे धकेल दिया। इस कार्रवाई से ईरान का समर्थन करने वाले हमास जैसे आतंकी संगठन भी कमजोर हुए। अंततः हमास और इजराइल के बीच शांति समझौते का रास्ता साफ हुआ।
ट्रंप के समर्थक व व्हाइट हाउस के पूर्व मुख्य रणनीतिकार बैनन और दक्षिणपंथी टिप्पणीकार टकर कार्लसन ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर अमेरिकी हमलों के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था।
वे अब वेनेजुएला को लेकर ट्रंप के खिलाफ हैं। पिछले हफ्ते एक कार्यक्रम में कार्लसन ने कहा था- यह थोड़ा अजीब है कि अमेरिका किसी दूसरे देश से कह रहा है कि हमें तुम्हारा नेतृत्व पसंद नहीं है, चले जाओ वरना हम तुम्हें मार देंगे। क्या आप अब इस तरह की मिसाल कायम करना चाहते हैं?
अटलांटिक काउंसिल के उपाध्यक्ष मैथ्यू क्रोनिग ने धमकी भरे अंदाज में साफ कह दिया कि वेनेजुएला में राष्ट्रपति निकोलस मादुरो को सत्ता से हटाने के लिए अगर अमेरिका की तरफ से कोई भी कार्रवाई की गई तो उसका कड़ा जवाब मिलेगा।
डिफेंस प्रायोरिटीज की सीनियर फेलो जेनिफर कवानाघ ने भी ट्रंप की सैन्य कार्रवाई को गलत ठहराया है। उनका कहना है कि एक बार जब अमेरिकी सैनिक कहीं भी हमले के लिए तैनात हो जाते हैं तो उन्हें वापस बुलाना बहुत मुश्किल हो जाता है क्योंकि इसमें काफी खर्च हो चुका होता है।
उन्होंने कहा कि एक बार जब आप किसी काम के लिए निवेश कर देते हैं, तो किसी न किसी उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ना ही पड़ता है। हालांकि, चीजें कभी गलत भी हो जाती हैं। छोटी सी चूक के चलते कभी-कभी अमेरिका को ज्यादा नुकसान उठाना पड़ता है।
Published on:
07 Nov 2025 07:26 am
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