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Wildlife के असली हीरो, जंगल के अंधेरों में साहसी यादों के चमकदार किस्से, संघर्षों की अनकही दास्तान

MP news: patrika.com की Wildlife के असली हीरो सीरीज वन कर्मियों और अधिकारियों के संघ्रषों, चुनौतियों की कहानी सुनाती है, आज इसके एपिसोड 4 में पढ़ें कूनो में प्रोेजेक्ट चीता की कमान संभाल रहे फील्ड डायरेक्टर की रोचक कहानी और एक रिटायर अफसर के अनुभवों के किस्से....

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Wildlife real hero patrika

Wildlife real hero patrika

MP News: कभी कंधे पर लकड़ी की राइफल, कभी रात के अंधेरों में हाथों से झांकती टॉर्च की रोशनी, चारों तरफ घना गहराता जंगल, वन्य जीवों की सुरक्षा का जिम्मा संभाल रहे वन कर्मियों और अधिकारियों की कहानी की शुरुआत कुछ इसी अंदाज में होती है। 9 से 5 नहीं, पूरे 24 घंटे सात दिन की ड्यूटी इस पर भी अगले दिन ये कहां तैनात होंगे वो भी इन्हें नहीं पता होता। मध्य प्रदेश के जंगलों की हिफाजत करते ये सेवक हमारे और आपके रक्षक भी हैं, क्यों कि वाइडलाइफ है तो हम हैं…इनकी सांसें थमने लगीं, तो हमारी भी धड़कने रुकने में समय नहीं लगेगा। क्या आप जानते हैं कितना कठिन है इनका काम… patrika.com ने Wildlife के असली हीरो के एपिसोड 4 में लेकर आया है… हर दिन नए संघर्ष से जूझते वन वीरों की कहानियां, जो हैं बड़ी रोचक, जंगलों के अंधेरों में चमकदार यादों के साहसी किस्सों और संघर्षों की अनकही दास्तान

Wildlife के असली हीरो, चुनौती से भरी जंगल की ड्यूटी, patrika.com की डिजिटल सीरीज का 4th Episode, चीता प्रोजेक्ट फील्ड डायरेक्टर और रिटायर्ड अधिकारियों के अनुभव सुनाती एमपी वाइल्डलाइफ के सफर की कहानियां...

रिटायर्ड SDO सेवाराम मलिक से patrika.com की सीधी बात

Q. शहर की तुलना में आपकी लाइफ स्टाइल कितनी अलग

A. -वन कर्मचारियों की लाइफ अनसर्टेन रहती है, 7X24 अवर्स की ड्यूटी रहती है, पता नहीं रहता कब कहां जाना पड़ा जाए। संसाधन उतने नहीं होते, क्योंकि रिमोट एरिया होता है। सबसे बड़ी परेशानी होती है जरूरत पड़े तो कोई सामग्री समय पर उपलब्ध नहीं हो पाती।

Q. क्या रहता है रूटीन..?

A. - वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन और वाइल्ड लाइफ मैनेजमेंट की बात करें तो, रूटीन में जंगल में गश्त का टाइम सुबह और शाम दोनों समय होती है। हर सीजन का अपना काम होता है, मानसून में मानसून गश्ती होती है। सर्वे होते हैं, गणना होती है सभी में अलग-अलग काम होते हैं।

Q. -अपने काम को लेकर बताएं कि आप सबसे बड़ी चुनौती क्या होती है?

A.- वन्यजीवों से इतना खतरा नहीं, क्योंकि गश्त करने जाने वाले कर्मचारि अधिकारियों को जानवरों के मूवमेंट एरिया पता होते हैं, उन्हें अनुभव होते हैं। भालू को छोड़कर ऐसा कोई वन्यजीव नहीं है, जो अटैक करता हो। वन्य जीव जब दो या दो से ज्यादा लोगों को देखते हैं तो वो अपना रास्ता बदल लेता है। अगर मांसाहारी जीव होते हैं, उनके हमले का डर जरूर रहता है, तब इंसान अपना रास्ता बदल लेता है।

Q.-जंगल में सबसे बड़ी समस्या?

A. - अगर फर्स्ट एड समय पर न मिले तो वो सबसे बड़ी समस्या है। जिससे वन कर्मियों को जूझना पड़ता है। पहले मलेरिया, बुखार का खतरा रहता था, अब ये बहुत कम हुआ है। रिमोट एरिया में अगर किसी को बुखार आ जाए, तो बाहर गांव आकर ही डॉक्टर को दिखाना पड़ता था। वो परेशानी बहुत बड़ी होती थी। लेकिन अब ऐसा कम हुआ है। विभाग ने अब फर्स्ट एड बॉक्स रखने शुरू कर दिए, जिससे छोटी-मोटी बीमारियों में दवाएं उपलब्ध रहते हैं। समय पर उपचार मिलने लगा है ये बड़ी राहत की बात है।

Q. चुनौतियों से भरी जंगल की ड्यूटी, आखिर क्या चुनौतियां रहती हैं आपके सामने

अवैध कटाई और शिकारियों की चुनौती ऐसी है जिसका कोई सोल्युशन नहीं मिल पाता। क्यों कि वन कर्मचारी दो या तीन के समूह में पेट्रोलिंग करते हैं, जबक ये अपराधी बड़े समूहों में जंगलों में घुसते हैं। डेढ़ महीने पहले ही नौरादेही में तीन-चार वन कर्मी कैंप में थे। देर रात को 10-12 लोग अंधेरे का फायदा उठाकर जंगल में घुसे और वन कर्मचारी स्टाफ के साथ साथ मारपीट कर निकल गए।

जनरली सोलर सिस्टम से ही बिजली जलती है, अगर सोलर सिस्टम काम नहीं कर रहा हो, तो फिर अंधेरा रहता है। उस दिन भी ऐसा हुआ और हमारा स्टाफ उन्हें अंधेरे में देख तक नहीं सका, कौन थे, क्या थे वो लोग।

-सेवा राम मलिक, रिटायर्ड सब डिविजन ऑफिसर, नौरादेही

चीता प्रोजेक्ट फील्ड डायरेक्टर, कूनो नेशनल पार्क से patrika.com की सीधी बात

Q.-एज ए चीता प्रोजेक्ट फील्ड डायरेक्टर हैं, तो आपकी क्या जिम्मेदारी है?

A. चीता प्रोजेक्ट ये नाम अभी बदला है। मैं कूनो नेशनल पार्क का फील्ड डायरेक्टर हूं, कूनो में चीते आए हैं, इसलिए कूनो में आने वाले चीतों की जिम्मेदारी भी मेरी है। मैं माधव टाइगर रिजर्व का भी डायरेक्टर हूं।

Q.-इस फील्ड में आपके सामने क्या चुनौतियां रहीं?

A.-चीता भारतीय विरासत का प्रतीक था। उसे हमने खो दिया। ऐसे में चीतों को यहां लाकर फिर से बसाना ही अपने आप में ही बड़ा चैलेंज है। हमारे पास चीतों को लेकर कोई प्रेक्टिस नहीं थी। फिर चीता अफ्रीका से आया है, तो वो कैसा बिहेवियर करेगा। उसके लिए मैनेजमेंट प्रेक्टिस भी वही थीं, जो अफ्रीका से आई थी। तो हमने उसे देखकर ही सब सीखा। कई चैलेंजेस शुरूआत में रहे, पिछले तीन साल में कई चीजें सीखी हैं, जो चुनौतियां पहले थीं वो अब कम हो गई है। लॉन्ग टर्म प्रोजेक्ट है अगले 20 साल में ही सफलता के बारे में कुछ कह सकेंगे।

-Q.- ऐसा कोई यादगार पल जो आपको लगता है कि आप जिसे कभी नहीं भूल सकते?

-A. हमारे लिए सबसे यादगर पल भी चीता प्रोजेक्ट रहा, जिसे देश के पीएम ने शुरू किया।

-Q- जब चीता की मौत को लेकर लोग प्रश्न उठाते हैं तब आपको कैसा लगता है?

A. ये हमारे लिए अनएक्पेक्टेड नहीं था कि ऐसे प्रश्न नहीं उठेंगे? लोग लगातार सवाल उठाते रहे हैं, प्रोजेक्ट शुरू होने से पहले भी और प्रोजेक्ट चल रहा है, तो अब भी उठाते हैं।

-उत्तम कुमार सिंह, एपीसीसीएफ, फील्ड डायरेक्टर, कूनो नेशनल पार्क/माधव नेशनल पार्क

बता दें कि कूनो नेशनल पार्कमध्य प्रदेश के शिवपुरी और श्योपुर जिलों में स्थित है। इसका कुल क्षेत्रफल 748 वर्ग है। इससे पहले ये वाइल्ड लाइफ सेंचुरी था। 2022 में इसे नेशनल पार्क का दर्जा मिला। इसका नाम यहां बहने वाली कूनो नदी के नाम पर ही कूनो पड़ा है। सालभर बहने वाली ये नहीं जंगली जानवरों के पीने के लिए पानी का महत्वपूर्ण स्रोत है। यहां कि भूमि मिश्रित पर्णपाती है, यानी यहां सूखे पेड़ों के जंगल हैं। घास के मैदान, छोटी पहाड़ियां, घाटियां और झाड़ियां जो शिकारियों और शिकार दोनों के लिए उपयुक्त माहौल बनाती हैं। यहां चीतों के अलावा तेंदुआ, भालू, जंगली बिल्ली, नीलगाय, सांभर, चीतल, जंगली सुअर और लोमड़ी पाई जाती हैं। करीब 120 पक्षियों की प्रजातियों की चहचाहट से ये जंगल आबाद है। यहां मोर, हुदहुद, गरुड़, बटेर आदि शामिल हैं।