
राजकीय पशु वन भैंसा (फोटो सोर्स- पत्रिका)
Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ की पहचान सिर्फ धान, जंगल और जनजातीय संस्कृति तक सीमित नहीं है, बल्कि यहां का वन भैंसा भी राज्य की धरोहर और गर्व का प्रतीक है। वन भैंसा को छत्तीसगढ़ ने राजकीय पशु का दर्जा दिया है। लंबे समय तक यह दुर्लभ प्रजाति विलुप्ति के कगार पर पहुंच गई थी, लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। निरंतर संरक्षण प्रयासों और वैज्ञानिक प्रबंधन के कारण वन भैंसा का भविष्य सुरक्षित और आशाजनक दिखने लगा है।
पिछले दो दशकों में वन भैंसा की संख्या में लगातार गिरावट दर्ज की गई। इसके पीछे मुख्य कारण थे-
इन कारणों से राज्य के घने जंगलों में वन भैंसा की उपस्थिति लगभग खत्म होती जा रही थी। कुछ वर्ष पहले तक इनकी संख्या हाथों की उंगलियों पर गिनने लायक रह गई थी।
हाल के वर्षों में वन भैंसा की संख्या में धीरे-धीरे बढ़ोतरी हुई है। न केवल बस्तर और उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व में इनकी मौजूदगी फिर से दर्ज की गई है, बल्कि संरक्षण केंद्रों में सुरक्षित प्रजनन से इनकी आबादी स्थिर हुई है। राज्य सरकार ने हाल ही में वन भैंसा को “सुरक्षित भविष्य” की श्रेणी में लाने का दावा किया है। इसका मतलब है कि अब यह प्रजाति तुरंत विलुप्ति के खतरे से बाहर निकल चुकी है, हालांकि लगातार निगरानी और संरक्षण अभी भी जरूरी है।
कभी विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुके छत्तीसगढ़ की शान राजकीय पशु वन भैंसा अब नई उम्मीदों की ओर बढ़ रहे हैं। राज्य सरकार और वन विभाग की निरंतर कोशिशों ने इस दुर्लभ प्रजाति को नया जीवन दिया है। यही कारण है कि बीते कुछ वर्षों में इनकी संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी दर्ज की जा रही है।
इसकी सबसे ज्यादा संख्या बीजापुर जिले में स्थित इन्द्रावती टाइगर रिजर्व में है। प्रदेश सरकार के प्रयासों के बाद वन भैंसों की संख्या में वृद्धि के लिए मानस टाइगर रिजर्व से एक मादा वन भैंसा के साथ चार नर वन भैंसों को बारनवापारा अभ्यारण्य के 10 हेक्टेयर के बाड़े में रखा गया था, जहां वन भैसों की संख्या 10 तक पहुंच चुकी है।
इंद्रावती टाइगर रिजर्व अपनी हरी-भरी वादियों, उष्णकटिबंधीय फूलों की घाटी और विस्तृत घास के मैदानों की वजह से वन भैंसों का सबसे सुरक्षित घर बन चुका है। यहां लगभग 30 वन भैंसों की मौजूदगी दर्ज की गई है, जो प्रदेश में सबसे ज्यादा है। विशेषज्ञ मानते हैं कि इंद्रावती का प्राकृतिक वैभव न सिर्फ भैंसों के लिए आदर्श है बल्कि यह राष्ट्रीय स्तर पर भी एक अद्वितीय जैव-विविधता क्षेत्र साबित हो सकता है।
संरक्षण की दिशा में सबसे उल्लेखनीय काम बारनवापारा अभ्यारण्य में हुआ है। यहां असम के मानस टाइगर रिजर्व से नर-मादा वन भैंसों को लाकर विशेष 10 हेक्टेयर के बाड़े में रखा गया। 2020 में शुरू हुए इस प्रयोग ने अब सफलता का रूप ले लिया है। तीन साल के भीतर संख्या 6 से बढ़कर 10 हो चुकी है। यह साबित करता है कि बारनवापारा का वातावरण वन भैंसों के लिए बेहद अनुकूल है।
कभी दर्जनों की संख्या में मौजूद रहने वाले उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व में फिलहाल 1 नर वन भैंसा दर्ज किया गया है। वहीं विशेषज्ञ मानते हैं कि आने वाले समय में यहां भी वन भैसों की संख्या में इजाफा संभव है।
सरकार इंद्रावती टाइगर रिजर्व को पर्यटक-अनुकूल बनाने की दिशा में काम कर रही है। यहां जंगल सफारी शुरू होने के बाद पर्यटक वन्यजीवों और खासकर दुर्लभ वन भैंसों को नजदीक से देख पाएंगे। यह उद्यान आने वाले समय में कान्हा-किसली तरह डेवलप हो पाएगा।
वन मंत्री केदार कश्यप ने कहा कि 2001 में वन भैंस को राजकीय पशु घोषित कर उसके संरक्षण पर काम किए गए। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व में बारनवापारा में किए गए प्रयास इस दिशा में मील का पत्थर साबित हुए हैं। मंत्री ने भरोसा जताया कि भविष्य में वन भैंसों की संख्या में और बढ़ोत्तरी होगी और यह प्रजाति प्रदेश के जंगलों में और मजबूती से स्थापित होगी।
जैव विविधता का संतुलन- यह प्रजाति जंगल के पारिस्थितिकी तंत्र का अहम हिस्सा है।
सांस्कृतिक धरोहर- जनजातीय समाज इसे शक्ति और समृद्धि का प्रतीक मानता है।
राजकीय गौरव- राज्य का प्रतीक पशु होने के नाते इसकी रक्षा छत्तीसगढ़ की जिम्मेदारी है।
छत्तीसढ़ के राजकीय पशु वनभैंसा की संख्या पिछले एक साल में 6 से बढक़र 10 हो गई है। 2017 में राज्य वाइल्ड लाइफ बोर्ड से स्वीकृति मिलने पर असम के मानस टाइगर रिजर्व से 1 नर एवं 5 मादा वन भैंसा को लाया गया। साथ ही सभी को बारनवापारा अभयारण्य स्थित कोठारी वनपरिक्षेत्र में बनाए गए 10 हेक्टेयर के बाड़े में रखा गया है।
जहां 2024 में वन भैंसा संरक्षण एवं संवर्धन केन्द्र खैरछापर में 5 शावकों का जन्म हुआ। इसमें से एक शावक की मृत्यु हो गई। इस समय 10 वन भैसों को विशषज्ञों की निगरानी में रखा गया है। वनमंत्री केदार कश्यप ने बताया कि विशेषज्ञों की निगरानी में वन भैंसों का संरक्षण एवं संवर्धन करने से उनकी संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। असम से लाए जाने के बाद बारनवापारा अभयारण्य क्षेत्र उनके अनुकूल बनाया गया है। जल्दी ही बाघों को मध्यप्रदेश से लाने के बाद अचानकमार और सीतानदी-उदंती में छोडा जाएगा।
Updated on:
26 Sept 2025 12:55 pm
Published on:
26 Sept 2025 12:54 pm
बड़ी खबरें
View AllPatrika Special News
ट्रेंडिंग
