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ये पत्थर चुप हैं… लेकिन इनकी कहानी में जान है! जानें छत्तीसगढ़ के बरतियांभाठा गांव की रहस्यमयी कहानी…

Chhattisgarh Mystery Village: बरतियांभाठा गांव में आज भी ऐसे आदमकद पत्थरों का विशाल समूह मिलता है, जिन्हें लेकर गाँव वालों में एक अद्भुत जनश्रुति प्रचलित है। कहानी ऐसी कि सुनने वाला चौंक जाए...

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ये पत्थर चुप हैं… लेकिन इनकी कहानी में जान है! जानें छत्तीसगढ़ के बरतियांभाठा गांव का रहस्यमयी कहानी...(photo-patrika)

Chhattisgarh Mystery Village: छत्तीसगढ़ का महासमुंद जिला इन दिनों एक पुरानी रहस्यमयी कहानी को लेकर सुर्खियों में है। यहाँ के बरतियांभाठा गांव में आज भी ऐसे आदमकद पत्थरों का विशाल समूह मिलता है, जिन्हें लेकर गाँव वालों में एक अद्भुत जनश्रुति प्रचलित है। कहानी ऐसी कि सुनने वाला चौंक जाए- सैकड़ों साल पहले पूरे 150 बाराती एक तपस्वी के श्राप से पत्थर बन गए थे।

गाँव की लगभग 850–900 आबादी आज भी इस कथा के इर्द-गिर्द जीवन जीती है। पत्थरों का यह फैलाव किसी महाश्म, किसी प्राचीन सभ्यता या किसी दुर्लभ प्राकृतिक संरचना जैसा दिखता है, लेकिन ग्रामीण मानते हैं कि ये पत्थर असल में श्रापित बारात की स्मृतियाँ हैं।

Chhattisgarh Mystery Village: तपस्वी के श्राप में बदले 150 बाराती

छत्तीसगढ़ के इस बरतियांभाठा गांव में आज भी एक ऐसी रहस्यमयी कहानी जीवित है, जिसके बारे में सुनकर स्थानीय लोग और आने वाले पर्यटक हैरान रह जाते हैं। सैकड़ों वर्ष पहले एक बारात यहां से गुजर रही थी और उत्साह में डूबे बारातियों के शोर ने समीप तपस्या कर रहे एक तपस्वी को विचलित कर दिया।

तपस्वी ने क्रोधित होकर कहा- जिस स्थान को तुमने शोर से अपवित्र किया है, वहीं तुम सब जड़ हो जाओ… पत्थर बनकर! और इतना कहते ही पूरी बारात- दूल्हा, घोड़े वाले, रिश्तेदार और वादक समेत-क्षणभर में पत्थर बन गई।

बरतियांभाठा गांव का रोमांचकारी रहस्य

आज भी बरतियांभाठा में दूर-दूर तक बिखरे आदमकद पत्थर दिखाई देते हैं, जिन्हें ग्रामीण ‘पत्थर की बारात’ के रूप में पहचानते हैं। कई पत्थर मानवाकृति जैसे दिखते हैं- कहीं दो हाथ फैलाए आकृति, कहीं घोड़े जैसी संरचना, कहीं ढोल-नगाड़े की आकृति तो कहीं लंबे, चौड़े पत्थर जिन्हें लोग बाजे वालों का रूप मानते हैं। बुजुर्गों का कहना है कि कभी यहां ऐसे 150 से अधिक पत्थर हुआ करते थे, जिनमें से कुछ समय के साथ टूट गए या मिट्टी में दब गए, लेकिन आज भी इन पत्थरों की रहस्यमयी उपस्थिति गांव की भूगोल में स्पष्ट दर्ज है।

दूसरी ओर, पुरातत्वविद इस जनश्रुति को लोककथा मानते हुए इन पत्थरों को मेगालिथिक संस्कृति के अवशेष बताते हैं। उनके मुताबिक, प्राचीन आदिवासी समाज मृतकों की स्मृति या सामाजिक प्रतीकों के रूप में बड़े पत्थर खड़े करते थे, और बरतियांभाठा में दिखाई देने वाली ये संरचनाएं भी उसी परंपरा का हिस्सा हो सकती हैं। हालांकि, ग्रामीणों की आस्था और पुरातत्वविदों के विश्लेषण के बीच यह रहस्य अब भी जस का तस बरकरार है।

कहानी की शुरुआत- बारात, उल्लास और तपस्वी का क्रोध

गाँव में पीढ़ियों से चली आ रही कथा बताती है कि बहुत पुराने समय में एक बारात इस क्षेत्र से होकर निकली। थकान के चलते बारातियों ने गाँव के पास एक स्थान पर डेरा डाल दिया। उसी समय उस स्थान पर एक गंभीर साधना में लीन तपस्वी रह रहे थे।

बारातियों के गीत-संगीत, ढोल-ताशे और गहमागहमी से तपस्वी का ध्यान बार-बार भंग होता रहा। उन्होंने कई बार चुप रहने के लिए कहा, लेकिन मौज-मस्ती में डूबे बाराती नहीं माने। कहते है तप, क्रोध और आहत अहंकार-तीनों ने मिलकर तपस्वी को श्राप देने पर मजबूर कर दिया।

विशेषज्ञों के अनुसार

विशेषज्ञों के अनुसार बरतियांभाठा की ये संरचनाएँ 1000 से 2500 साल पुरानी हो सकती हैं और मेगालिथिक परंपरा से जुड़ी मानी जाती हैं। कई पत्थरों का आकार संयोगवश मानवाकार प्रतीत होता है, जिसने लोकमान्यता को मिथक का रूप दे दिया। समय के साथ कहानी ने ऐसा रूप लिया कि लोगों ने इन्हें श्रापित बारात मानना शुरू कर दिया, जबकि अब तक किसी वैज्ञानिक अध्ययन में इस बात का प्रमाण नहीं मिला कि ये पत्थर कभी जीवित मनुष्य थे।

इसके बावजूद गाँव की आस्था इन पत्थरों को सिर्फ इतिहास नहीं मानती- उनके अनुसार यह स्थान एक जीवित चेतावनी है, जहाँ हर पत्थर एक पुरानी कथा की गूँज की तरह खड़ा है

जहाँ आज भी ज़मीन पर बिखरी है पत्थर की बारात

गाँव वालों के मुताबिक पत्थरों के इस फैलाव वाले क्षेत्र के आसपास आज भी एक असामान्य सन्नाटा महसूस होता है। ग्रामीण मानते हैं कि जैसे ही सूरज ढलता है, यहाँ का माहौल अचानक बदल जाता है-मानो हवा में कोई अनजानी आहट घुल जाती हो।

कई लोगों ने रात में कदमों जैसी आवाजें सुनने का दावा किया है, लेकिन गाँव में इन बातों का ज़िक्र हमेशा फुसफुसाहट में ही होता है। स्थानीय लोग इस जगह को एक तरह की श्रापित भूमि बताते हैं और शाम ढलते ही यहाँ से दूरी बना लेते हैं। एक बुजुर्ग ग्रामीण की बात आज भी सबकी स्मृति में दर्ज है।