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1955 में गूंजी थी अलग छत्तीसगढ़ की आवाज़! ठाकुर रामकृष्ण सिंह ने पहली बार की थी राज्य की मांग, जानें पूरी कहानी…

Chhattisgarh Special: छत्तीसगढ़ का सपना देखने वालों ने इसे पूरा करने के लिए अपने गंभीर विचार, सक्रिय पहल और गतिविधियां चलाईं।

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1955 में गूंजी थी अलग छत्तीसगढ़ की आवाज़! ठाकुर रामकृष्ण सिंह ने पहली बार की थी राज्य की मांग(photo-patrika)

1955 में गूंजी थी अलग छत्तीसगढ़ की आवाज़! ठाकुर रामकृष्ण सिंह ने पहली बार की थी राज्य की मांग(photo-patrika)

Chhattisgarh Special: छत्तीसगढ़ का सपना देखने वालों ने इसे पूरा करने के लिए अपने गंभीर विचार, सक्रिय पहल और गतिविधियां चलाईं। इनमें ठाकुर छेदीलाल बैरिस्टर, माधवराव सप्रे, पं. सुंदरलाल शर्मा, पं. लोचनप्रसाद पांडेय, ठाकुर प्यारेलाल सिंह हैं। इसके अलावा और भी कई जननायक इसमें शामिल रहे। इनमें से एक विधायक रामकृष्ण सिंह ने इस मांग के समर्थन में सीपी एंड बरार राज्य की नागपुर विधानसभा में 21 नवंबर 1955 में जो विचार व्यक्त किए, वे आज भी पठनीय हैं।

Chhattisgarh Special: यह अंश इस प्रकार है…

अध्यक्ष महोदय इस सदन में आज चार-पांच रोज से जो भाषावार प्रान्त के हिमायती हैं, उन्होंने भाषण दिए। उससे यह स्पष्ट हो गया कि एक ही भाषा बोलने वाले एक ही भाषा के बड़े प्रांत में नहीं रहना चाहते। आयोग ने या हाई कमांड ने इस बात की कोशिश की कि एक भाषा के लोग एक ही प्रांत में रहें तो इसका भी विरोध इसी सदन में आज 5 दिनों से हम देख रहे हैं।

मराठी भाषा बोलने वाले लोग ही संयुक्त महाराष्ट्र में रहना नहीं चाहते। वे अपना अलग प्रांत बनाना चाहते हैं। उनके भाषण में एक-दूसरे के प्रति कटु भाव थे। इससे मुझे आभास होता है कि जब एक भाषा के बोलने वाले आपस में एक दूसरे के प्रति इतनी कटु भावना रख सकते हैं, तो वे दूसरी भाषा बोलने वाले के प्रति कैसी भावना रखेंगे। इन सब कारणों से अध्यक्ष महोदय, मैं एक भाषा के एक प्रांत बनाने की योजना का विरोध करता हूं।

छत्तीसगढ़ आंदोलन का प्रारंभिक स्व

दूसरी बात जोहन ने हमारे मुख्यमंत्री जी के प्रस्ताव में संशोधन रखा है उसका मैं समर्थन करता हूं। इस संबंध में अभी पहले हमारे एक उपमंत्री जी ने बहुत सुन्दर ढंग से ऐतिहासिक भूमिका दी है और वह इतनी यथेष्ठ है कि उसको मैं दोहराना नहीं चाहता। हम लोग जो गोंडवाना के समर्थक हैं वे यह चाहते हैं कि हमारा एक ऐसा कपोजिट प्रदेश बने, जिनमें वे मराठी भाषी जो आज 95 वर्ष से हमारे साथ रहते आए हैं वे भी साथ रहें और अभी तक जिस प्रकार प्रेमपूर्वक रहते आए हैं उसी प्रकार रहें।

1955 में विधानसभा में गूंजी थी आवाज़

अध्यक्ष महोदय, मैं प्रस्तावित मध्यप्रदेश का इसलिए विरोध करता हूं कि वह इतना अन-बोल्डी है कि उसमें एडमिनिस्ट्रटिव कनवानिअन्स बिल्कुल नहीं रहेगा। अध्यक्ष महोदय, मध्यभारत, भोपाल और विंध्य प्रदेश का महाकौशल प्रदेश से कभी भी शासकीय संबंध नहीं रहा।

पर्वत जंगल तथा अन्य कठिनाइयों के कारण आपस में आवागमन के लिए जो रेल और सड़क बनाने की सुविधा होनी चाहिए या इनको एक स्टेट के एडमिनिस्ट्रेशन में लाने के लिए जो सुविधा होनी चाहिए वह सुविधा बिल्कुल नहीं है। आपन इस बात पर भी गौर किया होगा कि बस्तर से मध्यभारत की कितनी दूरी है। 800 से एक हजार मील की दूरी होती है। ऐसे प्रदेश में बस्तर जैसे पिछड़े प्रदेश में रहने वाला व्यक्ति कैसे सुखी रह सकता है यह सोचने की बात है।

जिन्होंने सबसे पहले देखा था अलग छत्तीसगढ़ का सपना

दूसरी बात यह है कि हमारा छत्तीसगढ़, जो कि देश का बहुत ही पिछड़ा हुआ भाग है, इस बड़े प्रदेश में कभी पनप नहीं सकता। इसकी जो तरक्की होनी चाहिए इसकी तरफ से जो ध्यान देना चाहिए वह कभी भी प्रस्तावित मध्यप्रदेश के शासन में नहीं हो सकता। अध्यक्ष महोदय, आपने देखा होगा कि राजधानी के प्रश्न पर भोपाल, सागर, इटारसी और सबसे मुय जबलपुर की चर्चा होती रही पर किसी ने भी यह गौर नहीं किया कि हमारे बस्तर से या छत्तीसगढ़ से ये स्थान कितनी दूरी पर हैं। मैंने इस संबंध में इतने भाषण सुने पर किसी ने भी छत्तीसगढ़ का जिक्र नहीं किया।

हालांकि अध्यक्ष महोदय, मैंने अभी प्रस्तावित मध्यप्रदेश का विरोध किया है, मगर जो होना है वह तो होकर रहेगा। इसलिये इस सिलसिले में मैं यहां एक बात रिकॉर्ड करा देना चाहता हूं कि चाहे राजधानी भोपाल हो या सागर हो या जबलपुर हो पर उसमें हमारे छत्तीसगढ़ के हित का ध्यान रखा जाना चाहिए और वह यह है कि इसमें रायपुर शहर को उप-राजधानी बनाया जाए। रायपुर छत्तीसगढ़ का हृदय है और छत्तीसगढ़ के सभी स्थानों से बराबर दूरी पर है।

ठाकुर रामकृष्ण सिंह ने रखा था 1955 में

आज के हमारे मध्यप्रदेश की राजधानी नागपुर थी फिर गवर्नमेंट बराबर जबलपुर को उप-राजधानी मानती चली आ रही है इसलिए हम चाहते हैं कि सिर्फ सिर और चेहरे को ही न देखा जाए। इन्दौर, भोपाल और जबलपुर तो बड़े-बड़े शहर हैं वे आकर्षण के केन्द्र हो सकते हैं पर केवल चेहरे को ही न देखा जाए। हम दूर में जो गरीब लोग इस छत्तीसगढ़ में रहेंगे उनके ऊपर भी यथोचित ध्यान दिया जाना चाहिए इसलिए मेरा निवेदन है कि नवीन मध्यप्रदेश में रायपुर को उप-राजधानी बनाया जाए।

यहां जो गरीब लोग रहे हैं, उनमें राजनीतिक जागृति नहीं है इसका प्रमाण है कि 82 सदस्यों में से किसी ने भी राजधानी के प्रश्न पर यह नहीं कहा कि रायपुर को उप-राजधानी बनाया जाए। इससे पता चलता है कि ये लोग कितने बैकवर्ड हैं। इसलिए मैं चाहता हूं कि प्रस्तावित मध्यप्रदेश का यदि निर्माण होता है, तो रायपुर को उप-राजधानी बनाने के अलावा हाईकोर्ट बेंच, रेवन्यू बोर्ड बेंच और दीगर फेसिलटीज जो होती हैं वे दी जाएं। अध्यक्ष महोदय, मैं इन शब्दों के साथ गोंडवाना प्रांत की मांग का समर्थन करता हूं।

(प्रसिद्ध इतिहासकार राहुल सिंह के ब्लॉग से साभार)