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720 शांति धाराओं का रेकॉर्ड बना, सौ धर्म इंद्रों ने किया अभिषेक

जैन धर्म के इतिहास में पहली बार एक साथ एक स्थान पर 720 समोशरण विधान के 9 वें दिन एक साथ 720 श्रीजी की प्रतिमाओं का अभिषेक व शांतिधारा विद्योदय तीर्थ में रविवार को हुई। मुनि विमल सागर व मुनि अनंत के सानिध्य में सुबह 7 बजे से शांतिधारा हुई। तीन शांति धारा बोलियों के माध्यम से हुई।

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सागर

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Rizwan ansari

Oct 06, 2025

जैन धर्म के इतिहास में पहली बार एक साथ एक स्थान पर 720 समोशरण विधान के 9 वें दिन एक साथ 720 श्रीजी की प्रतिमाओं का अभिषेक व शांतिधारा विद्योदय तीर्थ में रविवार को हुई। मुनि विमल सागर व मुनि अनंत के सानिध्य में सुबह 7 बजे से शांतिधारा हुई। तीन शांति धारा बोलियों के माध्यम से हुई। सटटू कर्रापुर, प्रेमचंद उपकार और रितेश मड़ावरा परिवार ने शांतिधारा की। विधान के समापन पर हवन हुआ और उसके बाद श्रीजी की शोभायात्रा 9 चांदी के रथों में निकली। इन रथों में विधान के प्रमुख पात्र चक्रवर्ती दिनेश बिलहरा, सौधर्म इंद्र नितिन नीरज जैन सीहोरा, कुबेर इंद्र दीपक जैन शालू जैन, महायज्ञ नायक अजित कंदवा, बाहुबली सपना सुरेंद्र मालथौन, यज्ञ नायक, माहेंद्र इंद्र, ईशान इंद्र, सानत इंद्र, प्रकाश पारस और पप्पू प्रदीप पड़ा आदि के परिवार बैठे थे। 9 सारथी भी श्रीजी की प्रतिमा लेकर के इन रथों में बैठे थे। रथोम ने तीन फेरी पंडाल की लगाई और उसके बाद भाग्योदय तीर्थ में बन रहे सर्वतोभद्र जिनालय की फेरी लगाकर वापस विधान स्थल पहुंचा। जहां पर श्रीजी की प्रतिमाओं की अभिषेक शांतिधारा हुई और विधान सम्पन्न हो गया। मुकेश जैन ढाना ने बताया कि विद्योदय जैन तीर्थक्षेत्र में 9 दिवसीय कार्यक्रम में लगभग 1000 से अधिक इंद्र इंद्राणियों ने भाग लिया, जबकि 720 सौधर्म इंद्र और शचिरानी प्रमुख पात्र बनकर बैठे थे और उन्होंने प्रतिदिन 120 अर्घ चढ़ाकर विधान में भाग लिया।

भगवान का अनुष्ठान सबको मिलकर करना चाहिए : मुनि विमल सागर

इस अवसर पर आयोजित धर्मसभा में विमल सागर महाराज ने कहा कि अभी तक बड़े पैसे वाले लोग सौधर्म इंद्र बन पाते थे, लेकिन इस बार छोटी-छोटी राशि में सौधर्म इंद्र बनकर विधान का आनंद शहर के सैकड़ों लोगों ने लिया है। गुरुदेव की स्मृति में हुए इस विधान में आचार्य समय सागर महाराज का आशीर्वाद था इसलिए विधान निर्विघ्न संपन्न हो गया। मुनि ने कहा भगवान का अनुष्ठान सबको मिलकर करना चाहिए। इससे पुण्य ज्यादा मिलता है और कभी जब विपत्तियां आती हैं तो सबको मिलकर दूर करना चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रशांत जैन मुंबई इस विधान के पुण्यार्जक थे उन्हें सागर समाज ने धन्यवाद ज्ञापित किया। ब्रा. धीरज भैया ने विधान की कमान अच्छे तरीके से संभाली।