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पुण्य ओस की बूंद की तरह, पाप बारिश के पानी की तरह है : अनंत सागर

अंकुर कॉलोनी में मुनि विमल सागर महाराज व मुनि अनंत सागर महाराज के सानिध्य में सिद्धच्रक महामंडल विधान एवं विश्व शांति महायज्ञ के तीसरे दिन आज 64 रिद्धि विधान संपन्न किया गया। इस अवसर पर मुनि अनंत सागर ने कहा कि हमें कभी किसी की निंदा नहीं करना चाहिए।

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सागर

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Rizwan ansari

Nov 01, 2025

अंकुर कॉलोनी में मुनि विमल सागर महाराज व मुनि अनंत सागर महाराज के सानिध्य में सिद्धच्रक महामंडल विधान एवं विश्व शांति महायज्ञ के तीसरे दिन आज 64 रिद्धि विधान संपन्न किया गया। इस अवसर पर मुनि अनंत सागर ने कहा कि हमें कभी किसी की निंदा नहीं करना चाहिए। निंदा करने से नीच गोत्र का कर्म बंध होता है, नीचे कुल में जन्म होता है और नाना प्रकार की तकलीफ को सहन करना पड़ता है। मुनि ने कहा कि जिस तरह से एक सफल व्यापारी अपने धंधे का लेखा-जोखा रखता है, ठीक उसी तरह कुशल व्यक्ति पाप और पुण्य का लेखा-जोखा रखता है। मुनि ने कहा कि पुण्य ओस की बूंद के समान है जिसको एकत्रित करना बहुत कठिन है और पाप बारिश के पानी की तरह है इसलिए पाप से बचो।
मुनि ने कहा की योगी और भोगी दोनों को एकांत की आवश्यकता होती है, परंतु योगी कर्म काटने के लिए एकांत ढूंढता है और भोगी कर्म बांधने के लिए। कर्मों की मार बहुत भयंकर होती है कब कौन सी प्रकृति का उदय आ जाए इससे पहले देव शास्त्र और गुरु की शरण में रहकर धर्म की आराधना करना चाहिए। जैन धर्म में, कर्ण इंद्री को संयम और आध्यात्मिक विकास के लिए नियंत्रित करने का महत्व है, क्योंकि इंद्रियों के भोग जीवन में बंधन और दु:ख का कारण बन सकते हैं। ज्ञान प्राप्त करने के लिए कर्ण इंद्री एक महत्वपूर्ण साधन है, लेकिन इसका उपयोग विवेकपूर्ण और सीमित होना चाहिए ताकि सांसारिक सुखों और कर्मों में न फंसा जाए। जैन धर्म में, कर्ण इंद्री के विषय 'शब्द' के प्रति मोह को कम करने का प्रयास किया जाता है, जिससे आत्मा को मोक्ष के मार्ग पर बढऩे में मदद मिलती है। प्रधानाचार्य बाल ब्रह्मचारी अंकित भैया धनेटा एवं पंडित उदय चंद जी शास्त्री के मार्गदर्शन में विधान चल रहा है।