
नई दिल्ली। आजकल लोग तनाव, अकेलापन या मानसिक परेशानी में सबसे पहले चैटजीपीटी, जेमिनी या ग्रोक जैसे एआई चैटबॉट्स से बात करने लगते हैं। लेकिन विशेषज्ञों की नई चेतावनी है कि इसका अत्यधिक और गलत इस्तेमाल "एआई साइकोसिस" पैदा कर रहा है- यानी वास्तविकता और कल्पना का फर्क मिटना, भ्रम, मतिभ्रम और खतरनाक विचारों का बढऩा। इसे 'एआई साइकोसिस' ( AI psychosis) कहा जा रहा है, जिसमें लोग वास्तविकता से कट जाते हैं और भ्रम या पागलपन जैसे लक्षण दिखने लगते हैं।
डेनमार्क के मनोचिकित्सक सोरेन ऑस्टरगार्ड और स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की रिसर्च बताती है कि एआई चैटबॉट्स यूजर की हर बात को "हां में हां" मिलाते हैं। नकारात्मक विचारों को और मजबूत कर देते हैं। परिणामस्वरूप पहले से मानसिक रूप से कमजोर लोग भ्रम की गहरी खाई में गिर रहे हैं। कैलिफोर्निया में तो 7 परिवारों ने चैटजीपीटी पर मुकदमा ठोका है कि उनके परिजनों को एआई ने आत्महत्या के लिए उकसाया। अमेरिका-यूरोप में कई किशोरों की मौत के मामले भी सामने आ चुके हैं।
गुडग़ांव की साइकॉलजिस्ट डॉ. मुनिया भट्टाचार्य कहती हैं, "एआई भावनात्मक सहारा दे सकता है, लेकिन थेरेपी की जगह नहीं ले सकता। गंभीर अवसाद, खुदकुशी के विचार या साइकोसिस में एआई गलत सलाह देकर हालात बिगाड़ सकता है।"विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले दिनों में एआई थेरेपी के लिए सख्त नियम बनाने होंगे। तब तक सावधानी ही सबसे बड़ा बचाव है।
Updated on:
23 Nov 2025 01:41 pm
Published on:
23 Nov 2025 01:40 pm
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