CG News: प्रसव पीड़ा तो थी ही, पर शायद उससे भी बड़ा दर्द वो था, जब उसे पता चला कि एंबुलेंस नहीं आएगी। क्योंकि उसके गांव तक सड़क नहीं है.. क्योंकि रास्ते में नाला है… और उस पर पुलिया नहीं। तो फिर क्या करती? प्रसव पीड़ा के दर्द को झेलती उस महिला ने 4 किमी का सफर नंगे पैर तय किया। दर्द ज्यादा उठा तो जंगल में ही महिलाओं ने उसकी डिलीवरी करा दी।
पथरीली जमीन ही बेड बन गया और चादरें बन गईं पर्दा। मंजिल अब भी दूर थी। फिर सफर शुरू हुआ बाइक पर करीब 10 किमी का। अपने कुछ घंटे पहले जन्मे बच्चे को कलेजे से लगाए वह पहुंची अस्पताल तो मानों उस महिला को ऐसे लगा होगा कि उसका दर्द कम हो गया।
ये मामला बलरामपुर जिले के रघुनाथनगर थाना क्षेत्र अंतर्गत ग्राम पंचायत सोनहत के पंडोपारा बस्ती का है। बताया जा रहा है कि पंडोपारा बस्ती तक पहुंचने के लिए सड़क ही नहीं है। रास्ते में नाला पड़ता है लेकिन उस पर पुल नहीं बना है।
ऐेसे में महतारी एक्सप्रेस उसके गांव तक नहीं पहुंच सकी। पंडोपारा निवासी 28 वर्षीय मानकुंवर पंडो पति केश्वर चौथी बार गर्भवती हुई थी। 3 दिन पूर्व उसे प्रसव पीड़ा होने लगी। इस पर पति ने एंबुलेंस को कॉल किया, लेकिन बताया गया कि एक एंबुलेंस बलरामपुर जबकि दूसरी काफी दूरी पर है। इसके बाद परिजन गर्भवती मानकुंवर को पैदल ही रघुनाथनगर अस्पताल के लिए निकल गए। रास्ते में प्रसव पीड़ा बढऩे पर साथ रही 2 महिलाओं ने खुले आसमान के नीचे उसका प्रसव कराया। इसके बाद उन्होंने बच्चे को साथ लेकर नाला पार किया।