पर्यावरण संरक्षण और कोयले पर निर्भरता कम करने की दिशा में अब ओंकारेश्वर तीर्थनगरी से एक नई पहल शुरू होने जा रही है। यहां नगर में निकलने वाले नारियल के खोल, फलों के छिलके, भोजन के अवशेष जैसे जैविक कचरे से “बायो पेलेट्स” तैयार किए जाएंगे, जिनसे थर्मल पावर प्लांट में बिजली उत्पादन किया जाएगा। यह प्रयास न केवल नवीकरणीय ऊर्जा का नया स्रोत बनेगा बल्कि स्वच्छता और सतत विकास की दिशा में भी एक बड़ा कदम साबित होगा।
ओंकारेश्वर मंदिर में प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु पूजा-अर्चना के लिए पहुंचते हैं। इस दौरान बड़ी मात्रा में नारियल, फूल, फल और अन्य फूड वेस्ट निकलता है। अब इसी कचरे को निस्तारण की बजाय ऊर्जा उत्पादन में उपयोग करने की योजना पर काम शुरू हो गया है। नगरीय विकास विभाग आयुक्त संकेत भोंडवे ने जिला प्रशासन को इसके लिए प्रस्ताव तैयार करने के निर्देश दिए हैं। इसके तहत एक आधुनिक बायो पेलेट्स प्लांट लगाने की तैयारी की जा रही है। जिला प्रशासन ने इस योजना को आगे बढ़ाने के लिए विशेषज्ञों की टीम गठित की है, जो नगर से निकलने वाले वेस्ट की मात्रा और उसकी ऊर्जा क्षमता का अध्ययन कर रही है। प्रारंभिक आकलन के अनुसार, ओंकारेश्वर और आसपास के क्षेत्रों से प्रतिदिन इतना जैविक कचरा निकलता है कि इससे कई क्विंटल बायो पेलेट्स तैयार किए जा सकते हैं।
कोयले के बराबर ऊर्जा पैदा होती है
जानकारों के अनुसार, बायो पेलेट्स जैविक अपशिष्ट पदार्थों को सुखाकर, दबाव और ताप से तैयार किए जाते हैं। इन पेलेट्स को कोयले की तरह जलाकर थर्मल पावर प्लांट में प्रयोग किया जा सकता है। एक टन बायो पेलेट्स लगभग एक टन कोयले के बराबर ऊर्जा देता है, जबकि इससे कार्बन उत्सर्जन 80 प्रतिशत तक कम होता है। एक मीट्रिक टन बायो पेलेट्स बनाने के लिए लगभग 8.5 से 10 टन कृषि अपशिष्ट की आवश्यकता हो सकती है। यह एक अनुमानित आंकड़ा है। इसके लिए आवश्यक कचरे की मात्रा, कच्चे माल के प्रकार और पेलेट प्लांट की दक्षता पर निर्भर करती है।
कंसलटेंट से करवा रहे सर्वे
बायो वेस्ट मैनेजमेंट अब साइंटिफिक तरीके से किया जाएगा। ओंकारेश्वर में जो वेस्ट आता है उसमें फूल, नारियल आदि बड़ी मात्रा में आता है। आयुक्त द्वारा आइडिया दिया गया था, उसके आधार पर कंसलटेंट द्वारा विचार किया जा रहा है। हमारे पास संत सिंगाजी प्लांट है, जहां बायो पेलेट्स की खपत भी हो सकेगी।
ऋषव गुप्ता, कलेक्टर