भगवान महावीर के बताएं मार्ग पर जैन धर्म के सामाजिक बंधु एवं साधु संत अहिंसा को अपनाकर पुन्यार्जन करते है। दिगंबर जैन साधु संतों के पास सिर्फ दो उपकरण होते हैं एक पीछिका जिससे जीव जंतुओं की रक्षा की जाती है संयम का पालन किया जाता है, दूसरा कमंडल जिसके पानी से शुद्धी की जाती हे। मोर पंख से निर्मित पिच्छिका बहुत कोमल होती है, पिच्छि की तरह ही यदि हमारा हृदय भी कोमल हो जाए तो इससे बड़ा सुख और कोई हो नहीं सकता।
यह बात चातुर्मास कर रहे हैं उपाध्यक्ष विश्रुत सागर महाराज ने पिच्छि परिवर्तन महोत्सव पर आयोजित कार्यक्रम में कही। रविवार को जैन धर्मशाला सराफा में पिच्छिका परिवर्तन महोत्सव का आयोजन हुआ। वर्ष भर के उपरांत पिच्छि का परिवर्तन किया जाता है। उपाध्यक्ष विश्रुत सागर, मुनि निर्वेद सागर एवं आराध्य सागर महाराज के सानिध्य में हुए आयोजन के दौरान कई जिलों से श्रद्धालु पधारे। सचिव सुनील जैन ने बताया कि मुनि संघ का पाद पक्षालन अनिल वरदाना शिवनगर जबलपुर, विशाल, कैलाश, विवेक बीड़ वाले परिवार एवं शास्त्र भेंट पवन जैन पाटौदी कोटा, सपना जितेंद्र सुरेश लोहाडिया, विनय ऋषि दमोह परिवार द्वारा प्रदान किए गए।
विश्रुत सागर सागर महाराज की पिच्छि कीर्ति पहाडिय़ा एवं निर्वेद सागर महाराज की पिच्छि विजय जैन जबलपुर परिवार ने प्राप्त की। मुनि सेवा समिति के प्रचार मंत्री प्रेमांशु चौधरी ने बताया कि कार्यक्रम में आचार्य एवं मुनि संघ का संगीतमय पूजन किया गया। महोत्सव में समाज अध्यक्ष विरेन्द्र भट्यांण, विजय सेठी, अविनाश जैन, कैलाश पहाडिय़ा, पंकज जैन महल, अर्पित भैया, सुभाष सेठी, डॉ. पंकज जैन सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे। पूजन एवं भजनों की प्रस्तुति हर्ष जैन द्वारा दी गई। संचालन अंकित जैन कोटा एवं ब्रह्मचारी पारस भैया द्वारा किया गया।