नागौर. जयमल जैन पौषधशाला में चल रहे प्रवचन में जैन समणी सुयशनिधि ने भगवान महावीर स्वामी की साधना के चौथे वर्ष का गहन विवेचन प्रस्तुत करते हुए कहा कि भगवान महावीर स्वामी का प्रत्येक साधना वर्ष मानवता के लिए अद्वितीय शिक्षाएँ लेकर आता है। चौथा वर्ष विशेष रूप से धैर्य और सहनशीलता का संदेश देता है। इस अवधि में उन्होंने अग्नि, शारीरिक कष्ट, अपमान और सामाजिक उपहास जैसे अनेक विपरीत परिस्थितियों का सामना किया, फिर भी उनका तप, धैर्य और आंतरिक शांति अडिग रहे। उन्होंने कहा कि कठिन परिस्थितियाँ जीवन का अविभाज्य हिस्सा है, लेकिन उनका सामना बिना विचलित हुए करना ही सच्चे साधक की पहचान है। भगवान महावीर स्वामी ने सहनशीलता के माध्यम से यह सिद्ध कर दिया कि आत्मबल ही सभी प्रकार की चुनौतियों पर विजय पाने की सबसे बड़ी शक्ति है। उन्होंने कहा कि आज के जीवन में भी यदि हम धैर्य और सहनशीलता को अपना लें तो पारिवारिक, सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन की अनेक समस्याओं का समाधान सहज हो सकता है। भगवान महावीर की साधना का यह चौथा वर्ष हमें सिखाता है कि विपरीत परिस्थितियों को आत्मविकास का अवसर मानना ही सच्ची साधना है।
इनको किया सम्मानित
संघ मंत्री हरकचंद ललवाणी ने बताया कि प्रवचन प्रश्नो के उत्तर देने वालों में जागृति चौरडिय़ा व कचंन ललवाणी को रजत मेडल से सम्मानित किया गया। बोनस प्रश्नो के उत्तर कविता चौरडिय़ा, गौरांग नाहटा, अवनी ललवाणी को भी सम्मानित किया गया। प्रवचन प्रभावना का लाभ उर्मिला देवी, गौतमचंद खिंवसरा परिवार को मिला। चन्द्रकांता पींचा का तेले तप का बहुमान तेले तप की बोली से संघ द्वारा किया गया। इस दौरान तपस्वियों का सम्मान किया गया। प्रवचन मे महावीर चंद भूरट, जितेन्द्र चौरडिय़ा, मूलचंद ललवाणी, सुनील ललवाणी, सम्यक भूरट आदि उपस्थित थे। संचालन संजय पींचा ने किया।