ग्वालियर. श्रावण पूर्णिमा के मान विधान के तहत सनातन धर्मावलंबियों ने शनिवार को लक्ष्मीबाई कॉलोनी पड़ाव स्थित सिद्धपीठ श्रीगंगादास की बड़ी शाला में श्रावणी पर्व मनाया।
शाला के महंत पूरण वैराठी पीठाधीश्वर स्वामी रामसेवकदास के सानिध्य एवं आचार्य पंडित रामनरेश उपाध्याय के आचार्यत्व में लगभग 50 ब्राह्मण जनों ने हेमाद्रि संकल्प के साथ दशविध स्नान किया। इसमें भस्म, गोबर, सप्तमृतिका, एवं गोमूत्र, गोबर गोदूध गोदधि, गोघृत, से तैयार पंचगव्य, सर्वोषधि, कुश, अपामार्ग आदि से सस्वर वेदमंत्रों के बीच गंगा की जल धारा में स्नान कराया गया।
स्नानांग तर्पण विधान के बाद आसन ग्रहण कर गणपति पूजन, ऋषि पूजन, यज्ञोपवीत दान, यज्ञोपवीत पूजन, यज्ञोपवीत धारण, हवन और रक्षा विधान किए। कार्यक्रम में आचार्य दिनेश मुदगल, हरिशंकर द्विवेदी, ब्रजमोहन शास्त्री, ऋषिकेश शास्त्री सहित कई गणमान्य विद्वान उपस्थित थे।
श्रावणी उपाकर्म के तीन अंग हैं। इसमें प्रायश्चित संकल्प, स्वाध्याय और ऋषि पूजन व हवन शामिल हैं। तदनुसार महंत रामसेवक दास के सानिध्य एवं आचार्य रामनरेश उपाध्याय के निर्देशन में दशविध स्नान कर वर्ष पर्यंत जाने-अनजाने पाप कर्मों से मुक्ति के लिए प्रायश्चित किया गया। एवं ईश्वर से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करने की प्रार्थना की गई। इसके साथ ऋषि पूजा व यज्ञोपवीत पूजन आदि की विधि भी संपन्न कराई गई।। साथ ही सावित्री, ब्रह्मा, श्रद्धा, मेधा, प्रज्ञा, सदसस्पति, अनुमति, छंद व ऋषि को समर्पित हवन-यज्ञ में घृत आहुति के साथ वेद-वेदांग के स्वाध्याय का श्रीगणेश किया गया।
संस्कृत बोलने और उसके प्रचार प्रसार का लिया संकल्प:
श्रावण पूर्णिमा पर शाला में वेदपाठी ब्राह्मणों की उपस्थिति में संस्कृत दिवस भी मनाया गया। इस अवसर पर वेदपाठियों ने संस्कृत में बोलने एवं संस्कृत भाषा के प्रचार प्रसार का संकल्प लिया। महंत स्वामी रामसेवक दास ने कहा, संस्कृत विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है। इसे देव भाषा का दर्जा दिया गया है। सभी वेद पुराण संस्कृत भाषा में ही रचे गए हैं। हमारा दायित्व है की हम संस्कृत का सम्मान करें और इसे बोलचाल की भाषा बनाएं। उन्होंने कहा कि हिंदू समाज को यह बीड़ा उठाना चाहिए।
शाला के महंत पूरण वैराठी पीठाधीश्वर स्वामी रामसेवकदास जी के सानिध्य एवं आचार्य पंडित रामनरेश उपाध्याय के आचार्यत्व में लगभग 50 ब्राह्मण जनों ने हेमाद्रि संकल्प के साथ दशविध स्नान किया। इसमें भस्म, गोबर, सप्तमृतिका, एवं गोमूत्र, गोबर गोदूध गोदधि, गोघृत, से तैयार पंचगव्य, सर्वोषधि, कुश, अपामार्ग आदि से सस्वर वेदमंत्रों के बीच गंगा की जल धारा में स्नान कराया गया।
स्नानांग तर्पण विधान के बाद आसन ग्रहण कर गणपति पूजन, ऋषि पूजन, यज्ञोपवीत दान, यज्ञोपवीत पूजन, यज्ञोपवीत धारण, हवन और रक्षा विधान किए। कार्यक्रम में आचार्य दिनेश मुदगल, हरिशंकर द्विवेदी, ब्रजमोहन शास्त्री,ऋषिकेश शास्त्री सहित कई गणमान्य विद्वान उपस्थित थे।
वास्तव में श्रावणी उपाकर्म के तीन अंग हैं। इसमें प्रायश्चित संकल्प, स्वाध्याय और ऋषि पूजन व हवन शामिल हैं। तदनुसार महंत रामसेवक दास जी के सानिध्य एवं आचार्य रामनरेश उपाध्याय के निर्देशन में दशविध स्नान कर वर्ष पर्यंत जाने-अनजाने पाप कर्मों से मुक्ति के लिए प्रायश्चित किया गया। एवं ईश्वर से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करने की प्रार्थना की गई। इसके साथ ऋषि पूजा व यज्ञोपवीत पूजन आदि की विधि भी संपन्न कराई गई।। साथ ही सावित्री, ब्रह्मा, श्रद्धा, मेधा, प्रज्ञा, सदसस्पति, अनुमति, छंद व ऋषि को समर्पित हवन-यज्ञ में घृत आहुति के साथ वेद-वेदांग के स्वाध्याय का श्रीगणेश किया गया।
संस्कृत बोलने और उसके प्रचार प्रसार का लिया संकल्प:
श्रावण पूर्णिमा पर गुरुवार को शाला में वेदपाठी ब्राह्मणों की उपस्थिति में संस्कृत दिवस भी मनाया गया। इस अवसर पर वेदपाठियों ने संस्कृत में बोलने एवं संस्कृत भाषा के प्रचार प्रसार का संकल्प लिया। इस अवसर पर अपने उद्बोधन में शाला के महंत स्वामी रामसेवक दास जी ने कहा कि संस्कृत विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है। इसे देव भाषा का दर्जा दिया गया है। सभी वेद पुराण संस्कृत भाषा में ही रचे गए हैं। हमारा दायित्व है की हम संस्कृत का सम्मान करें और इसे बोलचाल की भाषा बनाएं। उन्होंने कहा कि हिंदू समाज को यह बीड़ा उठाना चाहिए।