
तेंदुओं का आतंक (Ifographics: Patrika)
Leopard in Sugarcane field: पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के अधिकांश गन्ने के खेतों में सांप-चूहों के साथ-साथ तेंदुए भी पाए जाते हैं। यह कोई मजाक नहीं बल्कि हकीकत है।
Leopard Attacks: तेंदुओं को ये खेत इतने पसंद आ रहे हैं कि उन्होंने जंगल छोड़ यहीं डेरा डाल लिया है। पिछले कई सालों से करीब दर्जन भर तेंदुए इन खेतों के हो गए हैं। जंगल की तुलना में खेतों में शिकार आसानी से मिल जाता है, इसलिए तेंदुए सुस्त और मोटे होते जा रहे हैं। अधिकारियों का कहना है कि सालों से गन्ने के खेतों में रहने के चलते तेंदुए अब जंगल में छोड़े जाने के लिए अनफिट हैं। ऐसे में उन्हें केवल चिड़ियाघर ही भेजा जा सकता है।
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश के बिजनौर से लेकर उत्तराखंड के हरिद्वार तक, गन्ने के खेतों में तेंदुओं का बसेरा है। इससे इंसानों के साथ उनके संघर्ष का खतरा लगातार बढ़ रहा है। पिछले महीने बिजनौर में तेंदुआ एक 20 वर्षीय युवती को उठाकर ले गया था। युवती अपने पिता के साथ खेतों में काम कर रही थी, तभी तेंदुए ने हमला बोल और उसे खींचकर गन्ने के खेतों में ले गया।
अधिकारियों का कहना है कि आसपास के रिजर्व में बाघों की बढ़ती संख्या ने तेंदुओं को खेतों का रुख करने के लिए मजबूर किया है। वह फसलों के बीच आसानी से छिप सकते हैं और यहां खाना भी आसानी से मिल जाता है। इसलिए तेंदुए अब वापस जंगल में नहीं जाना चाहते और जंगल में जिंदगी में फिर से ढलना अब उनके लिए भी आसान नहीं होगा।
रिपोर्ट बताती है कि बिजनौर में पिछले चार सालों में 92 तेंदुए पकड़े गए और इनमें से 40 को वापस जंगल में नहीं छोड़ा गया। वहीं उत्तराखंड के वन विभाग ने 2021 से अब तक करीब 96 तेंदुओं को रेस्क्यू किया है। इन तेंदुओं को जब भी राजाजी टाइगर रिजर्व में रखने की कोशिश की जाती है, वो वहां से भाग निकलते हैं। रेडियो कॉलर वाले तेंदुओं के रिजर्व से 30 किलोमीटर दूर गन्ने के खेतों में लौटने के मामले सामने आए हैं। इससे पता चलता है कि इन तेंदुओं को अब जंगल रास नहीं आ रहे हैं।
पगमार्क यानी तेंदुए के पैरों के निशान जंगल के किनारों से खेतों में जाते अधिक दिखाई देते हैं। इससे पता चलता है कि वो अब जंगल नहीं जाना चाहते। वन अधिकारियों का कहना है कि खेतों में रहने के चलते अधिकांश तेंदुए मोटे हो गए हैं, उनकी कमर गोल हो गई है। उनके पंजे कुंद हो गए हैं और उनमें पहले वाली सूझबूझ भी नहीं रही है - ये सभी उनके ऐसे माहौल में ढलने के संकेत हैं जहां शिकार के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती।
तेंदुओं के इस व्यवहार में आए बदलाव की एक बड़ी वजह बाघों की बढ़ती संख्या भी है। राजाजी और अमनगढ़ जैसे रिजर्व में टाइगर तेजी से बढ़े हैं। यहां उनकी संख्या 12 से बढ़कर 34 हो गई है। तेंदुए, बाघों से डरते हैं, इसलिए वह खुद को सुरक्षित रखने के लिए खेतों में घुस आए हैं। फसलों के बीच उनके लिए छिपना आसान होता है और इंसानों की मौजूदगी के करीब उन्हें शिकार भी आसानी से मिल जाता है। जनवरी 2023 से अब तक बिजनौर में तेंदुए के हमलों में 35 लोगों की मौत हो चुकी है। इनमें से अधिकांश हमले गन्ने के खेतों में हुए। वन विभाग ने करीब 80 गांवों में हाई-रिस्क जोन के तौर पर चिन्हित किया है।
वन विभाग का कहना है कि गन्ने के खेतों में रहने वाले तेंदुओं का व्यवहार जंगल में रहने वालों की तुलना में काफी अलग हो गया है। उनके कैनाइन (दांत) इतने कुंद हो गए हैं कि वे ठीक से शिकार भी नहीं पकड़ पाते। एक 10 साल के नर तेंदुए - जिस पर चार लोगों को मारने का आरोप है - का वजन 85 किलोग्राम था, जो सामान्य तेंदुए से काफी ज्यादा है। ऐसा इसलिए कि वह सालों से गन्ने के खेतों में रह रहा था और मवेशियों को निवाला बना रहा था।
हालांकि, मध्य प्रदेश के पूर्व प्रधान मुख्य वन संरक्षक (PCCF) और वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट सुहास कुमार का कहना है कि इसमें नया कुछ भी नहीं है। पीलीभीत, लखीमपुर, रामपुर - यह एक पूरा बेल्ट है, जहां बाघ और तेंदुए जैसे जानवर दशकों से खेतों में रहते आए हैं। यहां गन्ने की खेती जब से शुरू हुई है, वन्य प्राणियों के लिए यह एक अतिरिक्त बसाहट बन गया है। यूपी में जंगली जानवरों की सबसे ज्यादा आबादी पीलीभीत और लखीमपुर में है, संभव है कि यहां इंसानी आबादी बढ़ने से तेंदुए अब बिजनौर का रुख कर रहे हों।
गन्ने के खेतों में रहने वाले तेंदुओं के व्यवहार में आए बदलाव पर सुहास कुमार का कहना है कि क्या इसके कोई साइंटिफिक एविडेंस हैं? यह निष्कर्ष कैसे निकाला गया कि इन तेंदुओं के कैनाइन कुंद पड़ रहे हैं या उनमें पहले जैसी फुर्ती नहीं रही है। बिना किसी अध्ययन के इस तरह की बातों का कोई औचित्य नहीं है।
सुहास कुमार ने आगे कहा कि गन्ने के खेत तेंदुए या बाघ जैसे प्राणियों के लिए एडिशनल वाइल्ड लाइफ हैबिटेट बन गए हैं। गन्ने की लंबी फसल के बीच उनके लिए खुद को सुरक्षित रखना आसान हो जाता है। इन खेतों में लगभग पूरे साल कुछ न कुछ गन्ने की फसल खड़ी रहती ही है। इस वजह से जानवर उन्हें अपना ठिकाना बना लेते हैं। लिहाजा, एक जैसी फसल के बजाए उसे बदलते रहना जरूरी है।
इन तेंदुओं को दूसरे राज्य भेजने के प्रयास भी नाकाम साबित हुए हैं। क्योंकि कोई भी राज्य ऐसे तेंदुओं को अपने यहां नहीं रखना चाहता, जो इंसानी बसाहट के बेहद करीब रहना पसंद करते हैं। वहीं, देहरादून, बरेली और लखनऊ के चिड़ियाघरों में भी जगह नहीं है। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के अधिकारियों का कहना है कि पकड़कर वापस जंगल में छोड़ने का तरीका इन तेंदुओं के लिए कारगर नहीं है, क्योंकि ये वापस खेतों में लौट आते हैं।
देश में तेंदुओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है। पिछले साल जारी रिपोर्ट के अनुसार, बीते चार सालों में लेपर्ड की संख्या में 8% का उछाल आया है। 2018 में जहां देश में 12,852 तेंदुए थे, वहीं 2022 में यह संख्या बढ़कर 13,874 हो गई। हालांकि, कुछ राज्यों में इनकी संख्या कम भी हुई है। उत्तर प्रदेश की बात करें, तो वन विभाग द्वारा 2022 में की गई गणना के अनुसार, यहां 870 तेंदुए हैं। सबसे ज्यादा तेंदुए मध्य प्रदेश (3907) में हैं। इसके बाद महाराष्ट्र (1985), कर्नाटक (1879) और तमिलनाडु (1070) का नंबर आता है।
Updated on:
21 Nov 2025 06:57 pm
Published on:
21 Nov 2025 02:00 pm
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