
दुनिया में समय से पहले हो रही सालाना 81 लाख से अधिक मौतों के लिए वायु प्रदूषण को जिम्मेदार माना गया है, जो मानव स्वास्थ्य के लिए दूसरा सबसे बड़ा खतरा है। संयुक्त राष्ट्र के इन आंकड़ों का अवलोकन किया जाए तो ज्ञात होता है कि वायु प्रदूषण के चलते ही गैर संक्रामक रोगों में वृद्धि हो रही है और 5 साल से छोटे बच्चों में तो बाहरी एवं आंतरिक अस्वच्छ वायु ही मौत का प्रमुख कारण हैं। वायु प्रदूषण के कारण दिल, दिमाग, फेफड़ों आदि की बीमारी दर बहुत तीव्र गति से बढ़ती जा रही है। जन्म के साथ ही पहला संपर्क वायु से ही होता है ओर जीवन के पहले मिनट में 12 बार श्वास के माध्यम से ली जाने वाली वायु तय करती है कि वह प्राणदायिनी होगी अथवा शरीर में विषैली क्रिया करेगी। तथ्य यह है कि भौगोलिक सीमा से अप्रभावित अस्वच्छ वायु समूची दुनिया के लगभग 99 प्रतिशत व्यक्तियों तक श्वास रूप में पहुंच रही हैं। हालांकि प्रदूषित वायु सभी को प्रभावित करती है किंतु अपेक्षाकृत रूप से बच्चे, गर्भवती, वृद्धजन के साथ वंचित और हाशिये पर जीवन जी रहे लोग अपनी परिस्थितियों, सीमाओं और अवस्थाओं को लेकर अधिक प्रभावित होते हैं। सिर्फ मानव ही नहीं अपितु खेती की उपज को भी वायु प्रदूषण से खासा नुकसान हो रहा है। यदि स्वच्छ वायु की दिशा में सार्थक प्रयास किए जाएं तो कृषि नुकसान को भी आधा किया जा सकता है। खेती के नुकसान से न सिर्फ खाद्यान्न उपलब्धता पर असर पड़ता है, अपितु वह वातावरण में कार्बन उत्सर्जन एवं विषैली गैस के प्रसार का भी मुख्य कारक बनती है।
वायु प्रदूषण को कम करने से कृषि नुकसान में कमी 400 से 3300 करोड़ अमरीकी डॉलर के मध्य की बचत का साधन बन सकती है। यही नहीं वायु प्रदूषण से वैश्विक अर्थव्यवस्था भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहती। एक अनुमान के अनुसार लगभग 8 लाख करोड़ अमरीकी डॉलर के नुकसान का कारण भी अस्वच्छ वायु ही है, जो कि वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के 6 प्रतिशत से भी अधिक है। यह राशि मूलत: प्रदूषण जनित रोगों से निपटने के लिए मुहैया करवाई जाने वाली स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च की जा रही है। स्वच्छ वायु प्रदान करने की दिशा में विभिन्न स्तरों पर उपयुक्त कदम उठाए जाने की आवश्यकता के बीच भारत में राष्ट्रीय स्तर पर भी कुछ उल्लेखनीय प्रयास हुए हैं। वायु प्रदूषण रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाते हुए भारत ने वैकल्पिक स्रोतों के माध्यम से ऊर्जा उत्पादन के लिए 2030 के तय लक्ष्यों को पांच वर्ष पूर्व ही हासिल कर लिया है, इसी क्रम में वाहन प्रदूषण रोकने के लिए भी अनेक प्रोत्साहन योजना लागू की गई है। वायु प्रदूषण के लिए सबसे अधिक दोषी बेतरतीब शहरी परिवहन पर अंकुश लगाने के लिए वर्ष 2014 के बाद प्रभावी कदम उठाए गए हैं और उसी का परिणाम है कि इन 10 वर्षों में भारत में मेट्रो रेल का कवरेज 250 किलोमीटर से बढ़कर 1000 किमी हो गया है तथा लगभग 1000 किलोमीटर मेट्रो लाइनें अभी निर्माण की प्रक्रिया में है। यही नहीं बड़े शहरों के आसपास के क्षेत्रों से बढ़ते दैनिक यात्रियों के भार को दृष्टिगत रखते हुए दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के विभिन्न इलाकों को रैपिड रेल से जोड़कर व्यक्तिगत वाहनों में निर्णायक कमी लाने का ठोस प्रयास किया गया है। यूरोपीय देशों में अपेक्षाकृत रूप से बेहतर पर्यावरण एवं स्वच्छ वायु के पीछे प्रभावी शहरी सामुदायिक परिवहन भी है। यदि सामुदायिक परिवहन को नियोजित रूप में प्रत्येक शहर और उससे जुड़े कस्बों तक लागू कर दिया जाए तो उससे स्वच्छ वायु में एक व्यापक वृद्धि होगी तथा मानव दुर्घटना में भी कमी आएगी।
विद्यालयों समेत शिक्षण संस्थाएं, जहां व्यक्ति की नींव रखी जाती है, इस बाबत अपने छोटे कदमों से बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं। शिक्षण संस्थाओं में विद्यार्थियों के आवागमन के लिए निजी वाहनों पर रोक लगा पैदल, साइकिल अथवा स्कूल बस की बाध्यता करने मात्र से बड़ी मात्रा में प्रदूषण कम किया जा सकता है। इसी प्रकार स्वैच्छिक संस्थाओं को अपने अन्य एजेंडे के साथ शहर में फुटपाथ और साइकिल ट्रैक की अनिवार्यता का आंदोलन भी व्यापक बदलाव का माध्यम साबित हो सकता है। शहरी सरकारों को सड़कों की चौड़ाई बढ़ाने की अपेक्षा पैदल यात्रियों एवं साइकिल अनुकूल मार्ग स्थापना को प्राथमिकता देनी चाहिए। इसके अतिरिक्त जहां एक ओर प्रत्येक व्यक्ति को उत्तरदायी भाव से व्यवहार करना होगा वहीं स्वैच्छिक एवं शिक्षण संस्थाओं, निजी व्यवसायियों, शहरी सरकारों, नीति निर्धारकों आदि को भी संयत, अनुशासित एवं मर्यादित व्यवहार की ओर कदम उठाने होंगे।
Updated on:
14 Sept 2025 08:58 pm
Published on:
14 Sept 2025 08:30 pm
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