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संपादकीय : डिजिटल संसार में निजता का हनन चिंताजनक

डिजिटल संसार के तमाम फायदों के बावजूद खतरे भी हजारों है। लंबे समय से तकनीक के दुरुपयोग को रोकने की मांग उठती रही है। लेकिन हालत दिनों-दिन डरावनी और चिंताजनक होती जा रही है। इसमें संदेह नहीं कि स्वास्थ्य से लेकर शिक्षा तक हर क्षेत्र में तकनीक के जरिए क्रांति लाने की बातें हो रही […]

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डिजिटल संसार के तमाम फायदों के बावजूद खतरे भी हजारों है। लंबे समय से तकनीक के दुरुपयोग को रोकने की मांग उठती रही है। लेकिन हालत दिनों-दिन डरावनी और चिंताजनक होती जा रही है। इसमें संदेह नहीं कि स्वास्थ्य से लेकर शिक्षा तक हर क्षेत्र में तकनीक के जरिए क्रांति लाने की बातें हो रही है। लेकिन जब निजता पर हनन जैसे मामले सामने आते हैं तो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) को लेकर चिंता और बढ़ जाती है। यह भी एक तथ्य है कि निजता का हनन करने वाले कई खतरे तो खुद तकनीक के यूजर ही मोल लेने लगे हैं। एआइ के फोटो एडिटिंग टूल के एआइ साड़ी ट्रेंड से उजागर हुआ एक इंस्टाग्राम यूजर युवती का ताजा मामला इस ओर संकेत करने को काफी है। इतना ही नहीं, एआइ तकनीक लोगों को ठगने का काम भी कर रही है। यह एक तरह से समाज को खतरनाक निर्भरता के दलदल में धकेलने जैसा है। गूगल के जेमिनी एआइ सेे विंटेज साड़ी ट्रेंड के लिए फोटो अपलोड करने वाली युवती ने खुद बताया है कि वे अपलोड की गई फोटो में फुल-स्लीव ग्रीन सूट में थीं, लेकिन एआइ-जनरेटेड इमेज में उनके बांई बांह पर वह तिल साफ दिख रहा था जो वास्तव में है भी। ऐसा और कितनों के साथ हुआ होगा और आगे भी हो सकता है, कुछ कहा नहीं जा सकता। सवाल यह है एआइ तकनीक आखिर किसी की भी बॉडी के गहरे राज का कैसे पता लगा लेती है?

यह कोई संयोग नहीं, बल्कि एआइ की जासूसी का रूप कहा जा सकता है जिसमें वह हर फोटो को स्कैन कर, डेटाबेस से जोड़ते हुए हमारी निजी डिटेल्स उजागर कर देता है। दूसरा ताजा घटनाक्रम ख्यात धर्मगुरु के डीपफेक व एआइ जनरेटेड वीडियो का है जिसमें बेंगलूरु की एक महिला को ठगी का शिकार होना पड़ा। सवाल इस तरह की ठगी और निजता के हनन का ही नहीं है। पिछले सालों में ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं जिनमें यह भरोसा करना मुश्किल हो गया है कि सोशल मीडिया पर परोसी गई कोई जानकारी असली है या फर्जी। निजी जिंदगी में दखल की यह तो शुरुआत ही है। इससे भी बड़ा खतरा यह भी है कि एआइ तकनीक मानसिक स्वास्थ्य के लिए खतरा बन रही है। चैटबॉट्स से पूछे गए निजी सवालों के जवाब कई बार बहुत घातक होते हैं। अमरीका में एक किशोर का उदाहरण है जिसमें उसने चैटजीपीटी से सुसाइड के विचार शेयर किए तो बॉट ने उसे कोच की तरह तरीके बताते हुए इतना भ्रमित किया कि किशोर ने सच में आत्महत्या कर ली। भारत में भी तकनीक को लेकर खतरा कम नहीं है। युवा अकेलेपन में एआइ को दोस्त बना रहे लेकिन रिश्तों को कत्ल करने पर उतारू कंटेंट का सामना भी कर रहे हैं। इसकी बड़ी वजह कानूनी सख्ती की कमी ही है। हमारे यहां डीपफेक लॉ कमजोर है। सख्त कानून, एआइ रेगुलेशन और इसके साथ ही जागरूकता और सतर्कता की जरूरत ज्यादा है।