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बिहार चुनाव 2025: चाचा पारस ने दी चिराग को जीत की बधाई, पढ़िए लोजपा प्रमुख ने क्यों की चंडाल की चर्चा?

बिहार चुनाव 2025: चाचा पशुपति पारस ने चिराग पासवान को शानदार जीत पर बधाई दी। चिराग पासवान ने कहा कि उनकी बधाई मेरे लिए आशीर्वाद है। फिर उन्होंने “चंडाल” की चर्चा क्यों की?

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चिराग पासवान ने अरुण भारती को दी जिम्मेदारी (Photo-IANS)

बिहार चुनाव 2025में लोजपा (आर) की जीत पर पूर्व केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस ने चिराग पासवान को बधाई दी है। चिराग पासवान ने चाचा पशुपति पारस की बधाई पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “उन्होंने कभी गाली देते हुए मुझे ‘चंडाल’ कहा था। वह भी मेरे लिए आशीर्वाद था। आज बधाई दे रहे हैं, यह भी मेरे लिए आशीर्वाद है। वे बड़े हैं।” चिराग पासवान ने शुक्रवार को पटना स्थित लोजपा(आर) के कार्यालय में पत्रकारों से बात करते हुए ये बातें कहीं। बातचीत के दौरान उन्होंने अपने चाचा पर कई गंभीर आरोप भी लगाए। उन्होंने कहा कि चाचा पशुपति पारस ने लोजपा के साथ रामविलास पासवान के गैर‑राजनीतिक संगठन ‘दलित सेना’ को भी हड़पने का प्रयास किया था।

पारस की बधाई पर क्यों हो रही चर्चा?

राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (रालोजपा) के मुखिया पशुपति पारस की बधाई की काफी चर्चा हो रही है। पारस ने बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एनडीए की प्रचंड जीत पर अपने भतीजे चिराग पासवान को दो बार बधाई दी। इसको लेकर सियासी हलचलें तेज़ हो गईं। पारस ने पिछले रविवार को सोशल मीडिया पर दो घंटे के भीतर दो पोस्ट साझा किए। पहले पोस्ट में उन्होंने एनडीए के सभी घटक दलों के नेताओं को एक साथ जीत की बधाई दी, जबकि दूसरे पोस्ट में उन्होंने अपने भतीजे चिराग पासवान को अलग से बिहार चुनाव में जीत पर बधाई दी।¹

जद(यू) से अनबन

दरअसल, अक्टूबर 2020 में रामविलास पासवान के निधन के बाद नीतीश कुमार से अनबन के कारण चिराग पासवान ने बिहार विधानसभा चुनाव अकेले लड़ने का फैसला किया। चिराग के इस फैसले से लोजपा का एनडीए गठबंधन से नाता टूट गया था। हालांकि, इस चुनाव में पार्टी ने केवल एक सीट जीती, लेकिन इसने कई निर्वाचन क्षेत्रों में जदयू की संभावनाओं को नुकसान पहुंचा दिया था। जदयू ने 2020 के विधानसभा चुनाव में अपने खराब प्रदर्शन के लिए लोजपा को जिम्मेदार ठहराया था।

परिवार में टूट

इधर, 2020 के विधानसभा चुनाव में लोजपा के खराब प्रदर्शन के बाद पार्टी के अंदरूनी कलह गहरा गया। जून 2021 में, जदयू के समर्थन से पारस के नेतृत्व वाले एक गुट ने चिराग के नेतृत्व के खिलाफ बगावत कर दी। चिराग पासवान को ही पार्टी से बाहर कर दिया गया और वह परिवार तथा पार्टी में अलग‑थलग पड़ गए। पार्टी पर पारस और चिराग के दावे के बाद पार्टी टूट गई। पशुपति पारस ने चार सांसदों के साथ अलग होकर रालोजपा का गठन किया, जबकि चिराग पासवान ने लोजपा (आर) बनाई और अपने चाचा को पिता की विरासत पर दावे को चुनौती दी।


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