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भारत में बारिश-बर्फबारी और तबाही, अक्टूबर में क्यों हो रही बर्फबारी ?

देश के उत्तरी भाग में अक्टूबर की शुरुआत से ही हिमाचल की वादियां बर्फ से ढक गईं हैं। लाहौल-स्पीति, किन्नौर, मनाली और रोहतांग जैसे इलाकों में बर्फबारी होना इस वक्त में आम बात नहीं मानी जाती। आम तौर पर यहां पहली भारी बर्फबारी नवंबर के अंत या दिसंबर में होती है।

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Pankaj Meghwal

Oct 06, 2025

देश के उत्तरी भाग में अक्टूबर की शुरुआत से ही हिमाचल की वादियां बर्फ से ढक गईं हैं। लाहौल-स्पीति, किन्नौर, मनाली और रोहतांग जैसे इलाकों में बर्फबारी होना इस वक्त में आम बात नहीं मानी जाती। आम तौर पर यहां पहली भारी बर्फबारी नवंबर के अंत या दिसंबर में होती है। लेकिन इस बार मौसम ने कुछ अलग ही करवट ली है। उत्तर भारत के मैदानी इलाकों—दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश—में भी लगातार बारिश हो रही है, आसमान में बादल छाए हुए हैं और तापमान अचानक गिर गया है। आइए इस बारे में जानते हैं कि ये सब कुछ आखिर क्यों हो रहा है?

इसका सबसे बड़ा कारण है पश्चिमी विक्षोभ, जिसे अंग्रेज़ी में Western Disturbance कहा जाता है। ये एक ऐसा सिस्टम है जो ठंडी और नम हवाएं लेकर पश्चिम से आता है। आमतौर पर ये सिस्टम अक्टूबर के मध्य या अंत में सक्रिय होता है, लेकिन इस बार यह जल्दी आ गया। मौजूदा समय में एक सक्रिय पश्चिमी विक्षोभ उत्तर भारत के ऊपर बना हुआ है। ये सिस्टम ईरान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान से होकर भारत में दाखिल हुआ है और अपने साथ काफी नमी लेकर आया है। हिमालयी क्षेत्रों में इस सिस्टम ने ठंडी और नम हवाओं का संगम बना दिया। नतीजा यह हुआ कि ऊंचाई वाले इलाकों में तापमान शून्य के नीचे चला गया और बर्फबारी शुरू हो गई। वहीं मैदानी इलाकों में मूसलाधार बारिश देखने को मिली।

अब सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या मानसून गया ही नहीं? भारतीय मौसम विभाग के अनुसार, ये पश्चिमी विक्षोभ मॉनसून की वापसी को धीमा कर रहा है। यानी जब दक्षिण-पश्चिम मानसून दक्षिण और पश्चिम भारत से वापस जाने वाला था, तभी इस विक्षोभ ने नमी को दोबारा खींच लिया। वैज्ञानिक मानते हैं कि यह सिर्फ एक क्षेत्रीय घटना नहीं, बल्कि इसका संबंध वैश्विक जलवायु असंतुलन से है। आर्कटिक में बर्फ तेजी से पिघल रही है, जिससे ऊपरी वायुमंडल की जेट स्ट्रीम की दिशा और रफ्तार में बदलाव हो रहा है। जेट स्ट्रीम बहुत तेज़, संकरी हवाएं होती हैं जो आमतौर पर पश्चिम से पूर्व दिशा में बहती हैं। ये हवाएं ठंडी और गर्म हवा के मिलने से बनती हैं और करीब 11 से 13 किलोमीटर की ऊंचाई पर बहती हैं। जब इनका संतुलन बिगड़ता है, तो मौसम के पैटर्न भी बदल जाते हैं।

जहां भारत में मानसून आम तौर पर 1 जून से 30 सितंबर तक सक्रिय रहता है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में ये अवधि खिंचने लगी है। दक्षिण भारत, बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से उठने वाले लो-प्रेशर सिस्टम अकसर नमी के साथ उत्तर भारत की ओर बढ़ जाते हैं। इस साल प्रशांत महासागर में एल नीनो की स्थिति बनी हुई है। यानी समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से ज्यादा है। एल नीनो सिर्फ मानसून ही नहीं, बल्कि पोस्ट-मॉनसून मौसम को भी प्रभावित करता है। एल नीनो के कारण अरब सागर और हिंद महासागर में तापमान बढ़ता है, जिससे नमी असामान्य दिशा में चलती है और यह नमी पश्चिमी विक्षोभ के साथ मिलकर पहले ही बारिश और बर्फबारी ले आती है।

इसमें हिमाचल और उत्तराखंड का भूगोल भी एक बड़ी वजह है। ऊंचाई में अचानक बदलाव, घाटियों में नमी का फंस जाना और हवाओं की दिशा में बाधाएं – ये सब मिलकर स्थानीय मौसम प्रणाली (माइक्रो-क्लाइमेट) बनाते हैं, जो मौसम को और ज्यादा प्रभावित करते हैं।

ऐसे में इस बर्फबारी और ठंड का असर खेती पर भी साफ नजर आ रहा है। हिमाचल और उत्तराखंड में अक्टूबर के महीने में सेब और आलू की फसलें लगी होती हैं। बर्फबारी से सेब के पेड़ों को नुकसान हो सकता है, क्योंकि अभी फल पकने का समय है। वहीं खेतों में लगी सब्जियां और आलू ठंड और नमी की वजह से सड़ सकते हैं। बता दें कि ये कोई सामान्य मौसमी बदलाव नहीं है। यह जलवायु परिवर्तन की एक सीधी चेतावनी है। मौसम अब पहले जैसा नहीं रहा—यह अनिश्चित, असंतुलित और तेजी से बदलता जा रहा है।