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संपादकीय : डिजिटल प्रदूषण से निपटने के लिए सख्त कदम जरूरी

डिजिटल प्रदूषण हमारे सामाजिक ताने-बाने पर चोट करने वाली बड़ी समस्या साबित होता जा रहा है। ओवर-द-टॉप (ओटीटी) प्लेटफॉर्म व अन्य डिजिटल माध्यमों के जरिए हिंसक, अश्लील, भडक़ाऊ व मानहानिकारक सामग्री जिस तरह से परोसी जा रही है वह सभी के लिए चिंता का सबब बनी है। देश के सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के बाद […]

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डिजिटल प्रदूषण हमारे सामाजिक ताने-बाने पर चोट करने वाली बड़ी समस्या साबित होता जा रहा है। ओवर-द-टॉप (ओटीटी) प्लेटफॉर्म व अन्य डिजिटल माध्यमों के जरिए हिंसक, अश्लील, भडक़ाऊ व मानहानिकारक सामग्री जिस तरह से परोसी जा रही है वह सभी के लिए चिंता का सबब बनी है। देश के सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के बाद केंद्र सरकार ने अब ऐसी डिजिटल सामग्री के प्रसारण पर पाबंदी लगाने की जो तैयारी की है वह स्वागत योग्य है। ओटीटी प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक सामग्री जिस तरह से प्रसारित होने लगी है उसे देखते हुए सख्त नियम-कायदे बनाने की लंबे समय से जरूरत महसूस की जा रही है।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि विभिन्न डिजिटल माध्यमों के जरिए लोगों की सोच-समझ, संवाद और संपर्क का दायरा बढ़ा है। सोशल मीडिया अभिव्यक्ति का बड़ा माध्यम भी बना है। लेकिन इसके जरिए परोसे जा रहे आपत्तिजनक कंटेंट के खतरे भी हजार हैं। सिनेमा व टीवी चैनलों पर पहले ही हिंसा, अपराध और अनैतिकता फैलाने के आरोप लगते रहे हैं। अब सोशल मीडिया मंचों पर ऐसे कंटेंट की भरमार है जो समुचित नियंत्रण के अभाव में बढ़ते ही जा रहे हैं। डिजिटल प्रदूषण का सबसे बड़ा दुष्प्रभाव यह है कि यह सामाजिक मानस को भीतर ही भीतर दूषित कर रहा है। हिंसक और अश्लील सामग्री बच्चों और किशोरों की सोच को विकृत कर रही है, जबकि भडक़ाऊ और झूठी सूचनाएं समाज में अविश्वास, तनाव और धु्रवीकरण को बढ़ा देती हैं। लगातार ऐसे कंटेंट के संपर्क में रहने से संवेदनशीलता कम होती है, आक्रामकता बढ़ती है और सामाजिक संवाद हिंसा तथा उग्रता में बदलने लगता है। डिजिटल माध्यमों की अनियंत्रित सामग्री मानसिक स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर छोड़ती है- अनिद्रा, चिंता, अकेलापन और अवसाद की शिकायतें तेजी से बढ़ी हैं। जाहिर है समाज को सूचनाओं से जोड़े रखने के साथ ज्यादा जरूरी यह है कि अहितकारी सूचनाओं को उस तक पहुंचने से रोका जाए। चिंता इस बात की भी है कि ओटीटी प्लेटफॉर्म व सोशल मीडिया कंपनियां हिंसा और अपराध को बढ़ावा देने वाली सामग्री से किनारा करती नजर आती हैं। सरकार को नियम-कायदे तो सख्त करने ही होंगे, साथ ही उसे अपने निगरानी तंत्र को इस तरह विकसित करना चाहिए कि अवांछित सामग्री अपलोड ही नहीं की जा सके। जरूरी यह भी है कि जो सामग्री पहले से अपलोड हैं, उनकी पड़ताल कर फौरन हटा दी जाएं।
स्कूलों व अभिभावकों को डिजिटल साक्षरता बढ़ाने पर जोर देना होगा ताकि बच्चे हानिकारक सामग्री से खुद को बचा सकें। सरकार को एक ऐसी मजबूत शिकायत प्रणाली विकसित करनी चाहिए जिसमें आपत्तिजनक सामग्री की रिपोर्टिंग और कार्रवाई सुनिश्चित हो सके। समाज, सरकार और डिजिटल कंपनियां- सभी मिलकर इस प्रदूषण को कम करने में सफल हो सकते हैं।